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________________ उ. अचिन्त्य आत्मगुण सम्पन्न राज राजेश्वर के दर्शन कर हम धन्य हुए प्र. 454 श्रमणावस्था के दौरान मन में क्या चिंतन-मनन करना चाहिए ? हे करुणानिधि ! कठोर तप व जप के द्वारा आपने संयम मार्ग की साधना ं की । प्रतिपल धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान में निमग्न रहे, प्राणीमात्र पर समदृष्टि रखी, ज्ञान - दर्शन - चारित्र से आत्मा को अलंकृत किया। ऐसे आत्म जागरुक परम कृपालु दयानिधान देवाधिदेव तीर्थंकर परमात्मा के. दर्शन उत्कृष्ट पुण्यशाली आत्मा ही कर सकता है । प्र.455 अभिषेक किसे कहते हैं ? उ. विविध औषधियों से युक्त पवित्र जल द्वारा मन्त्रोच्चार पूर्वक जिनबिम्ब के सर्वांग की विशुद्धि करना, अभिषेक कहलाता है । प्र.456 अभिषेक व प्रक्षाल में क्या अन्तर है ? उ. अभिषेक - जिन प्रतिमा के शीर्षभाग (सिर) से सुगन्धित जलादि द्वारा न्हवण करना, अभिषेक है । प्रक्षाल - जिनेश्वर परमात्मा के चरणों में जलधारा आदि के द्वारा चरण प्रक्षालन (पखारना) करना, प्रक्षाल कहलाता है । प्र. 457 मेरु पर्वत पर इन्द्र आदि देवता कितने कलशों से परमात्मा का जन्माभिषेक करते है ? 1 करोड 60 लाख कलशों से इन्द्र आदि देवता परमात्मा का जन्माभिषेक करते है । प्र.458 परमात्मा के 250 अभिषेक में से कौन से देवता कितने अभिषेक करते है ? भवनपति देवों के 20 इन्द्रों के उ. उ. 118 Jain Education International 20 For Personal & Private Use Only • अभिषेक पंचम अवस्था त्रिक www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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