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________________ श्रमणावस्था - परिकर में विद्यमान जिन प्रतिमा का मुण्डित मस्तक देखकर परमात्मा की श्रमणावस्था का चिंतन करना । प्र.451 परिकर रहित जिन बिम्ब की द्रव्य पूजा के अन्तर्गत परमात्मा की पिण्डस्थ अवस्था का चिंतन कैसे करें ? उ. जन्मावस्था - परमात्मा के प्रक्षाल व अभिषेक के समय परमात्मा के जन्माभिषेक और बाल्यावस्था का चिंतन करना होता है। राज्यावस्था - परमात्मा के मस्तक पर तिलक करते समय राज्याभिषेक और परमात्मा की अलंकार पुजा, अंगरचना के समय परमात्मा की राज्यावस्था का चिंतन करना होता है । श्रमणावस्था - जिनेश्वर परमात्मा का केश रहित मनोहर मस्तक को देखकर श्रमणावस्था का मन में ध्यान करना । प्र.452 जन्मावस्था के समय मन को किन भावों से भावित करना चाहिए ? उ. हे विभु ! जन्म से ही इन्द्रों के द्वारा सम्मान, सत्कार प्राप्त होने के बावजूद भी आपके अंतर मन मानस में लेशमात्र भी अहंकार भाव नही जगे । धन्य है आपके शैशव को । धन्य है आपके अनासक्त भावों को । धन्य है आपके जनेता को, जिनकी रत्न कुक्षि से ऐसा अद्वितीय पूत्र रत्न जन्मा । प्र.453 राज्यावस्था के समय हमें मन में क्या चिंतन करना चाहिए ? उ. हे देवाधिदेव ! हे कृपानिधान ! विशाल सुख समृद्धि अथाह, वैभव से परिपूर्ण साम्राज्य, सुकोमार्य यौवन को पाकर भी आप असंग, निर्लिप्त और अनासक्त रहे । शरीर की अपेक्षा आत्मा को सजाने, संवारने में प्रतिपल तत्पर रहे। मात्र चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय हेतु आपने राज्य का संचालन किया । भोग की बजाय आपश्री ने सदैव योग को महत्व दिया । ऐसे ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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