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________________ पंचम अवस्था त्रिक प्र.446 अवस्था के क्या तात्पर्य हैं ? । उ. परमात्मा के जीवन की विशिष्ट घटनाओं का चिंतन करना । प्र.447 अवस्था त्रिक किसे कहते हैं ? उ. परमात्मा की तीन विशिष्ट अवस्था - छद्मस्थकालीन पिंडस्थ अवस्था, सर्वज्ञपन की पदस्थ अवस्था और सिद्धकालीन रुपातीत अवस्था, इन तीन अवस्थाओं का चिंतन जिसमें किया जाता है, उसे अवस्था त्रिक कहते हैं। प्र.448 पिण्डस्थ अवस्था में परमात्मा की कौनसी अवस्थाओं का चिंतन किया जाता हैं ? उ. पिण्डस्थ अवस्था में परमात्मा की छद्मस्थ अर्थात् जन्मावस्था, राज्यावस्था और श्रमणावस्था का चिंतन किया जाता है। प्र.449 पिण्डस्थ अवस्था में तीर्थंकर परमात्मा का जीव क्या कहलाता हैं ? उ. पिण्डस्थ अवस्था में तीर्थंकर परमात्मा का जीव 'द्रव्य तीर्थंकर' कहलाता हैं। प्र.450 परिकर के द्वारा जिनेश्वर परमात्मा की पिण्डस्थ अवस्था का चिंतन कैसे करें ? उ. जन्मावस्था - तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमा के ऊपर विद्यमान परिकर में हाथी पर बैठे स्नापक देवों और हाथी की सूंड पर विद्यमान कलशों को देखकर परमात्मा की जन्म अवस्था का चिंतन करना । राज्यावस्था - परिकर में माला लेकर खडे देवताओं को देखकर परमात्मा की राज्यावस्था का चिंतन करना । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 116 पंचम अवस्था त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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