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________________ इस टीका की रचना शीलांकाचार्य ने की है। इस पाठ से यह स्पष्ट है कि गुरू महाराज की चंदनादि सुगंधित द्रव्य से पूजा करना चाहिये। अब प्रश्न है कि उनकी पूजा मात्र अंगूठे पर ही करनी चाहिये या नवांगी पूजा करनी चाहिये। शास्त्रों में स्थान स्थान पर गुरुदेव के नवांगी पूजा का विधान उपलब्ध है । गुरु भगवंतों की भी नवांगी पूजन का विधान आचार दिनकर आदि कई ग्रन्थों में उपलब्ध है । आचार दिनकर में कहा है - त्रिःप्रदक्षिणीकृत्य यतिगुरूं नमस्कुर्यात् । नवभिः स्वर्णरूप्यमुद्राभिः गुरोर्नवांगपूजां कुर्यात् । अर्थात् गुरु महाराज की तीन प्रदक्षिणा के बाद नौ स्वर्णमुद्राओं से उनकी नवांगी पूजा करें। ___ इस प्रकार गुरु महाराज की नवांगी पूजा का विधान द्रव्य सप्ततिका, तत्त्वनिर्णयप्रासाद, धर्मसंग्रह, प्रतिष्ठा कल्य आदि कई ग्रन्थों में उपलब्ध है। इस आधार पर दादा गुरुदेव की नवांगी पूजा ही करनी चाहिये। दिगम्बर साधुओं में आरती उतारने की परम्परा वर्तमान में है । श्वेताम्बरों में पूर्व में यह परम्परा थी । वर्तमान में आरती आदि की परम्परा व्यवहारिक कारणों से नजर नहीं आती । परन्तु नवांगी पूजन ___ का विधान तो शास्त्रों में है ही। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध है की दादा गुरुदेव की नवांगी पूजन ही करना चाहिये। +++++++++++++++++++++中中中中中中中中中中中中中中中中中中++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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