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________________ -मण आदि न हो ऐसे निर्जन व पवित्र स्थल पर निर्माल्य को परटना चाहिए ताकि हम जीव हिंसा और आशातना से बच सकें। प्र.426 पूजा हेतु स्नान कैसे करनी चाहिए ? उ. खुले स्थान पर जहाँ सूर्य की रोशनी (ताप) पडती हो, जहाँ निगोद-शैवाल आदि किसी प्रकार की वनस्पति न हो, कीडे-मकोडे आदि त्रस जीवजन्तु न हो, जहाँ की भूमि कठोर हो गड्ढे आदि न हो, ऐसी भूमि का प्रमार्जन करके जयणा पूर्वक स्नान करनी चाहिए । स्नान के पश्चात् जयणा पूर्वक उस पानी को निर्जीव स्थल में फैला देना चाहिए ताकि वह स्नान जल शीघ्रता से सुख जाये। प्र.427 स्नान बाथरुस में क्यों नहीं करना चाहिए ? __बाथरुम में स्नान करने से अनन्त जीवों का संहार (घात) होता है । बाथरुम से स्नान जल गटरों से होता हुआ नदियों तालाब, समुद्र आदि में जाता है। जहाँ वर्षों तक पानी सुखता नही है जिसके कारण अनंत जीवों की उत्पत्ति प्रतिपल उस पानी में होती रहती है। मनुष्य के शरीर से निकला मल-मूत्र, मेल, पसीना, थुक, बलगम और शरीर स्पर्श कृत पानी यदि 48 मिनिट के अन्तर्गत नही सुखता है तो उस पानी की प्रत्येक बुंद में असंख्य समुच्छिम मनुष्य पैदा होते है । स्नान कर्ता का आयुष्य समाप्त हो जाता है, परन्तु उस स्नान जल में जीवों के जन्म-मरण की प्रक्रिया जारी रहती है । अत: पंचेन्द्रिय जीवों, निगोद, शैवाल के अनन्त जीवों तथा जलचर आदि जीवों का संहारक होने के कारण स्नान बाथरुम में नही करना चाहिए । अहिंसा ही जिनधर्म का प्राण +++++++++++++++++++++++++++++++++++ 104 चतुर्थ पूजा त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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