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________________ शुद्धि 5. उपकरण शुद्धि 6. विधि शुद्धि 7. द्रव्य शुद्धि । सम्बोध प्रकरण गाथा 130 के अनुसार - 1. मन शुद्धि 2. वचन शुद्धि 3. काया शुद्धि 4. वस्त्र शुद्धि 5. भूमि शुद्धि 6. पूजा-सामग्री की शुद्धि 7. चित्त की स्थिरता। प्र.424 निर्माल्य किसे कहते है ? उ. चैत्यवंदन वृहत्भाष्यानुसार “भोग विणटुं दब्वं, निम्मल्लं विति गीअत्थत्ति ।" अर्थात् गीतार्थ भोग से विनष्ट हुए द्रव्य को निर्माल्य कहते है। जिन प्रतिमा पर चढाया गया वह द्रव्य, जो निस्तेज हो गया हो, जिसकी शोभा चली गयी हो, जिसकी गंध बदल चुकी हो, ऐसे स्पर्श, रस, वर्ण व गंध से विकृत बने द्रव्य को बहुश्रुतों ने निर्माल्य कहा है क्योंकि ऐसा विकृत द्रव्य दर्शनार्थियों के मन में हर्षोल्लास उत्पन्न करने में समर्थ नही होता है । . चैत्यवंदन वृहत्भाष्य गाथा 89 पूज्य देवन्द्रसूरि म. ने संघाचार भाष्य की गाथा 8 की टीका में पूजा त्रिक के अधिकार में कहा - जो द्रव्य भोग से विनष्ट हो गये है, पुनः चढाने के योग्य नहीं है, वे निर्माल्य कहलाते है। विचार सार प्रकरण के अनुसार-जिन प्रतिमा के सामने जो अक्षत आदि चढाया जाता है, वह निर्माल्य कहलाता है । पर यह कथन उचित प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि अन्य शास्त्रों में जो निर्माल्य का स्वरुप बताया गया है वह इसमें घटित नहीं होता हैं । तत्त्व तो केवलीगम्य है। L25 निर्माल्य को कहाँ परठना चाहिए ? उतरे हुए पुष्पादि निर्माल्य में वर्षा ऋतु में कुंथुए आदि त्रस जीवों की उत्पति की संभावना रहती है इसलिए जहाँ मनुष्य का संघट्ट-स्पर्श, आक्र SA+++++++++++++++++++++++++++++中中中中中中中中中中 यवंदन भाष्य. प्रश्नोत्तरी 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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