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________________ है। यतना और विवेक दृष्टि द्वारा हमें ऐसे घोर कर्म बन्धक के कारकों से बचना चाहिए। प्र.428 खुले चौक या छत की व्यवस्था न होने पर स्नान कैसे करना चाहिए? उ. बाथरुम में बड़ी परात में बैठकर स्नान करना चाहिए । परात में एकत्रित स्नान जल को मार्ग या धूप में फैला देना चाहिए ताकि वह अल्प समय में ही सुख जाये । ऐसा करने से हम गटर द्वारा होने वाली घोर जीव हिंसा से बच सकते है। प्र.429 दो तौलियों का उपयोग करना आवश्यक है ? उ. हाँ, आवश्यक है। गंदे शरीर को साफ किये प्रथम तौलिये पर ही पूजा के वस्त्र का धारण करने से पूजा के वस्त्र अशुद्ध हो जाते हैं, जो आशातना का कारण बनते है, क्योंकि पूजा में वस्त्र शुद्धि जो सात शुद्धियों में एक है, वह आवश्यक है। अतः प्रथम गीले तौलिये को लपेटने के पश्चात् . . . अंतर वस्त्र हटाकर, द्वितीय (दूसरा) शुद्ध तौलिया धारण कर प्रथम को हटाकर, पूजा के वस्त्र धारण करने चाहिए । प्र.430 पूजा के वस्त्र धारण करने से पूर्व और पश्चात् क्या-क्या - सावधानियां बरतनी चाहिए ? । .. उ. i. पूजा के वस्त्र धारण करने से पूर्व बाल संवार लेने चाहिए । 2. पूजा वस्त्र धारण करने के पश्चात् प्रवचन आदि में मैली चादर पर नही बैठना चाहिए। 3. पूजा के वस्त्रों में सामायिक, प्रतिक्रमण आदि नही करना चाहिए । ९९ । +++++++++**********+++++++++++++++++++++++ 105 चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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