SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शस्त्र परिज्ञा के इस निरूपण में षटकाय जीवों की हिंसा का विरोध है। जीव के अस्तित्त्व का प्रारम्भ से अन्त तक विवेचन किया गया है और जगह-जगह यह बोध कराया गया है कि जिस तरह से लोक में मनुष्य अपने जीवन को चाहता है उसी तरह से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति भी अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहते हैं। जहाँ समाज का प्राणी मात्र जीना चाहता है, वहाँ प्रकृति से जुड़े हुए पृथ्वी आदि तत्व अपने जीवन को सुरक्षित चाहते हैं। यदि इनकी सुरक्षा नहीं तो पर्यावरण की समस्या अजगर की तरह विकराल रूप ले लेगी, जिससे हमारा अस्तित्त्व और प्रकृति का समग्र अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। प्रस्तुत अध्ययन में प्रकृति से जुड़े हुए समग्र चेतना तत्व को समझे बिना जीवों के अस्तित्त्व को सुरक्षित रख पाना संभव नहीं है। हमारा पर्यावरण सुरक्षित होगा तो समग्र वातावरण सुरक्षित होगा, सभी जीवन्त होंगे, सभी एक दूसरे को समझेंगे। ___ महावीर की दृष्टि में निश्चित ही वैज्ञानिकता रही होगी। इसीलिये उन्होंने शस्त्र परिज्ञा अध्ययन के माध्यम से सहअस्तित्व को अधिक बल दिया। पृथ्वी से लेकर पेड़-पौधों तक के साथ मैत्री भाव सर्वोपरि माना है। उन्होंने प्रत्येक जीव की संज्ञा को महत्त्व दिया। प्रत्येक जीव के अस्तित्व को बल दिया। चाहे वे खनिज पदार्थ हों, जलीय पदार्थ हों या अग्नि के पदार्थ ही क्यों न हों। उन सभी में जीव है उन्हें मारने का मतलब है अपने को मारना, उन्हें सताने का मतलब है अपने को सताना, इत्यादि समत्व को नियोजित करने वाले साधन हैं। संघर्षमय जीवों की सुरक्षा को सुरक्षित रखना प्रस्तुत अध्ययन का मूल पाठ है । प्रत्येक उद्देशक का विषय परिचय निम्न प्रकार हैप्रथम उद्देशक - इस उद्देशक के प्रारम्भ में सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को सम्बोधित करते हुए महावीर की इस उक्ति को प्रतिपादित किया है कि इस संसार में कितने ही ऐसे जीव हैं जिन्हें यह तक नहीं पता होता है कि मैं कहाँ से आया हूँ? और क्या होऊँगा? आगम की यह पंक्ति/वाणी भगवान् के अर्थ रूप आगम का सम्पूर्ण बोध कराती है कि जीव संज्ञावान है परन्तु वे अपनी संज्ञा को अज्ञानता के कारण नहीं जान पाते हैं, क्योंकि अज्ञानता से युक्त प्राणियों को संज्ञा से रहित, दोषों से युक्त तब तक माना जाता रहेगा, जब तक कि वे ज्ञान को प्राप्त नहीं हो जाते हैं। ज्ञान संज्ञा आत्मबोध कराने वाली है। यह स्व और पर का बोध कराती है। ___ आत्मा का स्वरूप क्या है? जीव कैसे भवान्तर को प्राप्त होता है ? इत्यादि कई प्रश्न सामने आते हैं सूत्रकार ने जिस संज्ञा का कथन किया है यह ज्ञान संज्ञा है, वृत्तिकार ने संज्ञा पर वृत्ति लिखते हुए संज्ञा के दस भेद किये हैंआचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन ५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy