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आचार्य आत्माराम का हिन्दी अनुवाद
आचार्य आत्माराम का हिन्दी अनुवाद बृहद् व्याख्यात्मक परिचय के रूप में प्रसिद्ध है। आपके आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, अनुत्तरोपपातिक, उपासक दशांग, अनुयोगद्वार, अन्तकृद्दशांग, स्थानांग आदि आगम हिन्दी जगत में प्रसिद्ध हैं। आपकी यह श्रुत सेवा समाज को आगम सम्बन्धी ज्ञान का परिचय करवा सकी है। इसलिये आप हिन्दी विवेचनकार के रूप में युग-युग तक पहचाने जाते रहेंगे। - जैनाचार्य के रूप में प्रसिद्ध घासीलाल जी महाराज चिर-स्मरणीय रहेंगे।
आचारांग, सूत्रकृतांग, समवायांग आदि अङ्ग ग्रन्थों, उत्तराध्ययन आदि मूल ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद तो महत्त्वपूर्ण हैं ही परन्तु २० आगमों के संस्कृत विवेचन के प्रस्तुतीकरण के साथ हिन्दी अनुवाद व्याख्या साहित्य की परम्परा के लिए नयी दिशा ही कही जा सकती है।
१९-२० शताब्दी के इस युग में भी इस तरह का कार्य सराहनीय अवश्य माना जाता है। यह प्रस्तुतीकरण केवल कल्पनात्मक नहीं है अपितु दार्शनिक विश्लेषण के साथ विविध टिप्पणों से अलंकृत अवश्य ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
__ आचार्य जवाहरलाल ने सूत्रकृतांग पर हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है, जो सूत्रकृतांग की शीलांक-वृत्ति पर आधारित है।
__ आचार्य हस्तिमल जी महाराज ने दशवैकालिक, नन्दीसूत्र, प्रश्नव्याकरण और अन्तगड पर अपने हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किए हैं। वृहत्-कल्प सूत्र की एक लघु टीका भी हिन्दी में प्रस्तुत की गई है।
मालवकेसरी सौभाग्यमल जी महाराज ने आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुत स्कन्ध का हिन्दी अनुवाद विस्तृत विवेचन के साथ प्रस्तुत किया है। ज्ञानमुनि ने विपाक सूत्र,मुनि कन्हैयालाल 'कमल' ने ठाणांग और समवायांग, विजयमुनि का अनुत्तरोपपातिक, उपाध्याय अमर मुनि आदि के भी हिन्दी अनुवाद उपलब्ध होते हैं। अभी कुछ समय से आचार्य तुलसी के नेतृत्व में दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, स्थानांग आदि आगमों का हिन्दी अनुवाद टिप्पणी सहित प्रकाश में आया है। आगमों पर आचार्य तुलसी के नेतृत्व में भी अनुवाद प्रस्तुत किए जा रहे हैं। आगमों का सम्पादन, संकलन आदि भी हो रहा है।
__ मधुकर मुनि के नेतृत्व में अब तक का आगम साहित्य पर सबसे बड़ा कार्य माना जायेगा। आगमों के अनुपलब्ध हिन्दी अनुवाद टिप्पणी सहित प्रकाशन में आ रहे हैं।
श्री जिनमणिसागरसूरि कृत कई आगमों के हिन्दी अनुवाद एवं महोपाध्याय विनयसागर के कल्पसूत्र एवं ऋषिभाषित के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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