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पण्डित फूलचन्द जी महाराज का सुत्तागम अनुवाद, महासती चन्दना का उत्तराध्ययन का हिन्दी अनुवाद, महोपाध्याय चन्द्रप्रभसागर का आयार-सुत्त, मुनि ललितप्रभसागर का सूयगड-सुत्त आदि हिन्दी अनुवाद भी हिन्दी जगत में अपना स्थान बनाये हुये हैं। मुनियों के अतिरिक्त श्रावक समाज के द्वारा आगमों पर हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किये गये हैं। डॉ. सुभाष कोठारी और डॉ. सुरेश सिसोदिया के प्रकीर्णकों पर हिन्दी अनुवाद हमारे सामने आ रहे हैं।
आगमों के व्याख्यात्मक परिचय अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृत, संस्कृत हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती आदि के विवेचन आगमों की विशेषताओं को उद्घाटिक करते हैं। नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि एवं आगमों पर लिखी गई हैं। इन आगमों के समस्त व्याख्या साहित्य की पृष्ठभूमि में धर्म, दर्शन, संस्कृति, तात्विक दृष्टि, गणित, ज्योतिष, भूगोल, खगोल, मंत्र, तंत्र, इतिहास आदि का विवेचन हमारे संस्कृति और सभ्यता के नये आयामों को दृष्टिगोचर कराती है।
____ आगमों की देशना अर्धमागधी भाषा में हुई, जिसे देववाणी कहा गया है। इसे आर्ष भाषा भी कहा जाता है। आर्ष पुरुष महावीर तीर्थंकर परम्परा के अन्तिम तीर्थंकर हैं। उनका जो भी अर्थ रूप में प्रतिपादन हुआ उसको गणधरों ने सूत्रबद्ध कर दिया। इसलिये अर्थागम के प्रणेता महावीर हैं और शब्दागम (सूत्रागम) के प्रणेता गणधर माने जाते हैं। यह बात भी विचारणीय है कि जो कुछ भी सूत्रों में था, उस पर नियुक्तिकारों, भाष्यकारों, चूर्णिकारों, टीकाकारों आदि ने विषय की गंभीरता को प्रकाशित करने का जो प्रयास किया है, वह तीर्थ-परम्परा के अनुरूप माना जाता है। उसमें कोई विरोध नहीं है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से या किसी अन्य दृष्टि से इन पर विचार किया जाए तो आगमों का यह व्याख्या साहित्य संस्कृति की महान् सुरक्षा कर सकेगा।
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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