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१. नन्दी वृत्ति, २ . अनुयोग-द्वार वृत्ति, ३. दशवैकालिक वृत्ति, ४. प्रज्ञापना- प्रदेश व्याख्या और ५. आवश्यक वृत्ति इत्यादि कई वृत्तियाँ उनकी प्रसिद्ध हैं । आपने १४४ ग्रन्थों की रचना की थी । उपलब्ध ग्रन्थों में दार्शनिक विवेचन की बहुलता है 1
कोट्याचार्य की वृत्ति का विवेचन-विशेषावश्यक भाष्य पर १३,७०० श्लोक प्रमाण विवरण प्रस्तुत किया है जो विवेचन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।
आचार्य गन्धहस्ति की वृत्ति का विवेचन - तत्त्वार्थभाष्य पर जो बृहद् वृत्ति का उल्लेख मिलता है, वह गन्धहस्ति का माना गया है । १९ दूसरा सिद्धसेन का था, जो तार्किक विद्वान् थे ।
शीलाङ्काचार्य और उनकी वृत्तियाँ - तत्त्वादित्य एवं शीलाचार्य के नाम से प्रसिद्ध शीलाङ्काचार्य का नाम मूल आगम ग्रन्थों की वृत्तियों के लिये प्रसिद्ध है। 1 शीलांकाचार्य का नाम आचारांग वृत्ति में शीलाचार्य दिया गया है और दूसरा नाम तत्त्वादित्य भी आया है । ७०
आचारांग वृत्ति के प्रथम श्रुत स्कन्ध में यह भी कथन किया गया है कि शीलाचार्य ने भाद्र शुक्ला पञ्चमी के गुप्त सं. ७७२ के दिन सम्यक् विवेचन युक्त टीका प्रस्तुत की। जिससे महत्त्वपूर्ण शोध कार्य हमारे सामने आया है। टीकाकार शीलांकाचार्य ने ब्रह्मचर्य श्रुत स्कन्ध की समाप्त के पश्चात् यह प्रतिज्ञा की है कि जो मेरे द्वारा यह आचारांग की टीका आचार ( चारित्र) के प्रतिपादन के लिये प्रस्तुत की जा रही है वह इसी पुण्य के संचय का कारण है । जगत के सामने निवृत्ति रूप है जो अतुल योग्य तुला पर सदाचार को मेरे द्वारा रखा जा रहा है। उसमें वर्ण, पद, अर्थ, वाक्य, पद्य आदि किसी तरह से छूट गए होंगे, उसे यदि शोधार्थी के द्वारा शोध का प्रयत्न किया गया तो निश्चित ही किसी तरह का व्यामोह नहीं होगा । ७२
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शीलाङ्काचार्य अर्थात् शीलाचार्य का विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता है प्रभावक चरित्र के अनुसार शीलाचार्य ने नौ अङ्ग आगम ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखी हैं परन्तु आचारांग वृत्ति और सूत्र - कृतांग वृत्ति ही उपलब्ध हैं। डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने टीका साहित्य के परिचय में आचारांग और सूत्र - कृतांग की संस्कृत टीकाओं के विषय में विशेष उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने इस विषय में यह लिखा है कि हरिभद्र सूरि के पश्चात् लगभग १०० वर्ष के उपरान्त शीलांक सूरि ने आचार - विचार एवं तत्त्व-ज्ञान सम्बन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन आचारांग और सूत्र - कृतांग वृत्ति में किया है।७३ डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने शीलांक आचार्य के विषय में सामान्य रूप से यही लिखा है कि आचारांग और सूत्रकृतांग इन दो अङ्ग आगमों पर महत्त्वपूर्ण टीकाएँ लिखी हैं । ७४
• टीकाकार के समय के विषय में डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि शीलांक आचार्य ने ईस्वी ८७६ में वृत्तियाँ लिखी हैं । ७५ जगदीश चन्द्र जैन ने यही समय आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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