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टीका साहित्य का परिचय
अर्ध-मागधी प्राकृत में लिखे गए मूल आगमों पर प्रारम्भ में नियुक्तियों और भाष्य ग्रन्थों पर प्रणयन हुआ । चूर्णिकारों ने चूर्णि युग में प्राकृत और संस्कृत से युक्त विवेचन प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् इनका टीका साहित्य ने व्याख्या साहित्य के रूप में प्रवेश किया। टीकाओं को वृत्तियाँ कहते हैं । मूल रूप से रूप सूत्रों, निर्युक्तियों, भाष्यों और चूर्णियों पर संस्कृत में जो टीकाएँ प्रस्तुत की गईं, उन्हें वृत्ति कहा जाता है ।
आगम पर वृत्तियों के लिखे जाने के कारण से मूल सूत्र के रहस्य अधिक स्पष्ट हुए । इसलिए संस्कृत में लिखी गई वृत्ति को जैन साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है।६८ क्योंकि संस्कृत की वृत्तियों ने आगम के शब्दों को, आगम के भावों को और आगम के गंभीर चिन्तन को विस्तार प्रदान किया । वृत्ति के रूप में प्रस्तुत विवेचन दार्शनिक विश्लेषण को प्रस्तुत करने वाला है । इसलिए वृत्ति साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
आगम के प्रसिद्ध वृत्तिकार
आगमों पर चूर्णि युग के बाद जो विवेचन प्रस्तुत किया गया, वह वृत्ति के रूप में प्रसिद्ध हुआ । वृत्तिकारों में हरिभद्र सूरि का नाम उल्लेखनीय है । इन्होंने आगम साहित्य के अतिरिक्त अन्य कई प्राकृत एवं संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों पर वृत्तियाँ लिखी हैं। आपके द्वारा प्रस्तुत वृत्तियाँ दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक विषयों को प्रस्तुत करने वाली हैं ।
शीलाङ्काचार्य ने आचारांग और सूत्र - कृतांग पर जो विवेचन प्रस्तुत किया है वह वृत्ति साहित्य में विस्तृत दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाला है ।
मूलतः इनके वृत्ति ग्रन्थों में दार्शनिक तत्त्वों की बहुलता है । इनकी वृत्तियों में सामाजिक, धार्मिक एवं सैद्धान्तिक पक्ष को विस्तृत रूप से देखा जा सकता है । वृत्तिकारों का परिचय
१. जिनभद्रगणि की स्वोपज्ञ वृत्ति-विशेषावश्यक भाष्य पर जिनभद्र गणि क्षमाक्षमण ने स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी, पर यह पूर्ण नहीं है । आगम साहित्य की यह प्रथम विवेचना शैली की दृष्टि से सरल, संक्षिप्त, सरस और विविध गुणों से अलंकृत है । विशेषावश्यक भाष्य की अपूर्ण वृत्ति को कोट्याचार्य ने पूर्ण किया ।
२. हरिभद्रसूरि और उनकी वृत्तियाँ — हरिभद्रसूरि प्राकृत एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे । उन्होंने मूल आगम ग्रन्थों के प्राकृत विवेचन को अपनी अनुभूति में उतार कर उन पर संस्कृत में वृत्तियाँ लिखी हैं। उन वृत्तियों में महत्त्वपूर्ण वृत्तियाँ निम्नलिखित हैं—
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आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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