SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . १४. आवश्यक चूर्णि—जिनदास गणि महत्तर द्वारा लिखी गई यह चूर्णि विषय और विवेचन की दृष्टि से यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ ही बन गया है । चूर्णिकार ने अनेक प्रकार के विषय के विस्तार को प्रस्तुत करने के लिए ही चूर्णि लिखी है । इसमें आवश्यक निर्युक्ति को आधार बनाया गया है । कहीं-कहीं पर विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं के विषय को सरल बनाया गया है । यह चूर्णि केवल शब्दों के अर्थ तक ही सीमित नहीं है अपितु भाषा और विषय की स्वतन्त्रता के लिए हुए बहुत ही पूर्ण व्याख्या को प्रस्तुत करने वाली है । 1 १५. दशवैकालिक चूर्णि – इस चूर्णि के प्रस्तुतकर्ता जिनदासगणि महत्तर हैं। दशवैकालिक नियुक्ति के आधार पर यह चूर्णि लिखी गई है। इसमें आवश्यक चूर्णि का उल्लेख मिलता है । इससे यह ज्ञात होता है कि यह कृति आवश्यक चूर्णि के पश्चात् प्रस्तुत की गई होगी। भावना, भाषा और शैली की दृष्टि से यह चूर्णि अति उपयोगी है । प्रसंगानुसार इस चूर्णि में लोक कथाओं एवं लोक परम्पराओं का भी मिश्रण हो गया है। भाषा, विज्ञान की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण चूर्णि है I १६. नन्दी चूर्णि – नन्दी सूत्र पर आधरित यह चूर्णि ज्ञान की गंभीरता को स्पष्ट करती है, इसमें ऐतिहासिक सामग्री की प्रचुरता है । इसमें लोक कथाओं एवं लोक रूपों का समावेश है । १७. अनुयोग-द्वार चूर्णि— अनुयोग-द्वार सूत्र पर जिनदास गणि महत्तर ने प्राकृत और संस्कृत मिश्रित गद्य प्रधान शैली में व्याख्या प्रस्तुत की है। इसमें शासन व्यवस्था का उल्लेख है। संगीत के पदों का भी कहीं-कहीं पर प्रयोग किया गया है इसलिए यह कहा जाता हैं कि प्राकृत में संगीत शास्त्र पर कोई ग्रन्थ अवश्य रहा होगा। इसमें सात स्वरों और नव रसों का सोदाहरण विवेचन किया गया है । ६७ यह चूर्णि भाव और शैली की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । १८. जम्बू द्वीपप्रज्ञप्ति चूर्णि – जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति पर लिखी गई चूर्णि जम्बू द्वीप के विस्तार को प्रस्तुत करने वाली है। यह चूर्णि लघु होते हुए भी द्वीप - समुद्रों जैसे विवेचन के लिए उपयोगी है। 1 आगमों पर प्रस्तुत की गई चूर्णियों के अध्ययन प्रस्तुत करने से ज्ञात होता है कि चूर्णियाँ विषय की गहराई तक को स्पर्श करने वाली हैं। इनमें धर्म, दर्शन, समाज, संस्कृति, कला इतिहास, पुरातत्त्व, लोक जीवन, लोक व्यवहार, लोक संस्कृति, लोक कथा आदि की विपुल सामग्री होने के कारण कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं । चूर्णियों पर अब तक कोई भी अनुसंधान नहीं किया गया है। अनुसंधान के कारण चूर्णियों के वास्तविक स्वरूप को आँका जा सकता है । अतः यह स्पष्ट है कि चूर्णियाँ भी उपयोगी हैं। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only ३३ www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy