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७. व्यवहार चूर्णि-इस चूर्णि को द्वादशांग का नवनीत कहा जाता है । व्यवहार सूत्र छेद सूत्र का अङ्ग है। चूर्णिकार ने व्यवहार सूत्र पर संस्कृत और प्राकृत मिश्रित गद्य प्रधान शैली में साधु जीवन के आचार-विचार की सुन्दर समीक्षा की है।
८. दशाश्रुत स्कन्ध चूर्णि-यह चूर्णि दस अध्ययनों के अधिकारों में दशाश्रुत स्कन्ध की समीक्षा करता है। इसके रचनाकार भद्रबाहु हैं। इसकी गणना छेद सूत्रों में की जाती है। नियुक्ति का आश्रय लेकर यह चूर्णि लिखी गई है। इसमें दशा, कल्प और व्यवहार को प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किया गया है। इसमें राजा सातवाहन, आचार्य कालक, सिद्धसेन एवं गोशालक आदि का आलेख भी है। इसके अतिरिक्त अन्य कई तपस्वियों का उल्लेख इस चूर्णि में हुआ है।
९. वृहत्कल्प चूर्णि—यह चूर्णि वृहत्कल्प सूत्र और उस पर लिखे गए लघु भाष्य पर संस्कृत और प्राकृत में लिखी गई गद्य प्रधान व्याख्या है। इसमें कल्प, वृहत् कल्प को कल्पाध्ययन भी कहा है। यह चूर्णि श्रमण-श्रगणियों के आचार-विचार की रूपरेखा को प्रस्तुत करने वाली है।
. १०. पञ्चकल्प चूर्णि-इसकी गणना छेद सूत्रों में की जाती है। यह चूर्णि वृहत्कल्प भाष्य का ही अंश है। इसमें आचार सम्बन्धी पाँच कल्पों का विवेचन है। इस पर लिखी गई चूर्णि अनुपलब्ध है। यह अगस्त्य सिंह सूरि की रचना है।
११. ओघ-नियुक्ति चूर्णि-ओघ सूत्र पर लिखी गई एक लघु चूर्णि है। इसकी गणना मूल सूत्रों में की जाती है। इसमें मूलतः श्रमणों की समाचारी का विवेचन किया गया है। इसमें यह भी निर्देश किया गया है कि संयम की साधना में रत श्रमण असंयम से कैसे बचें? और संयम को कैसे धारण करें? सरल एवं सुबोध शैली में प्रस्तुत चूर्णि श्रमण जीवन की आदर्श कुंजी भी कही जा सकती है।
१२. जीत-कल्प चूर्णि-एक मात्र यही एक ऐसी चूर्णि है, जिसमें संस्कृत भाषा का प्रयोग नहीं है। एक मात्र प्राकृत भाषा में निबद्ध गद्यात्मक शैली से युक्त इस चूर्णि का अपनी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य सिद्धसेन ने इस पर चूर्णि लिखी है। उस पर चन्द्रसूरि ने विषम पद टीका लिखी है। चूर्णिकार सिद्धसेन ने प्रायश्चित्त के दस विकल्पों का प्राकृत में बहुत ही अच्छा विवेचन किया है। जीत कल्प की चूर्णि में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण को स्मरण किया है। इस पर एक अन्य चूर्णि भी लिखी गई है।६६ ऐसा कथन भी किया जाता है।
१३. उत्तराध्ययन चूर्णि-जिनदासगणि महत्तर ने प्राकृत एवं संस्कृत मिश्रित उत्तराध्ययन सूत्र की जो व्याख्या प्रस्तुत की है उस व्याख्या का नाम उत्तराध्ययन चूर्णि है। यह चूर्णि नियुक्ति का आश्रय लेकर लिखी गई है। चूर्णिकार ने जगह-जगह पर लोक कथाओं के माध्यम से भी विषय की गंभीरता को स्पष्ट किया है। प्रसंगवश इस चूर्णि में तत्त्व चर्चा और लोक चर्चा भी उपलब्ध होती है।
आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन
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