________________
शासन व्यवस्था और सहायता के साधनों का पूरा विवेचन किया गया है । ६५ आगमों पर प्रसिद्ध और उपलब्ध चूर्णियों के नाम इस प्रकार हैं
१. आचारांग चूर्णि, २. सूत्र - कृतांग चूर्णि, ३. व्याख्या- प्रज्ञप्ति चूर्णि, ४. जीवाभिगम चूर्णि, ५. निशीथ चूर्णि, ६. महानिशीथ चूर्णि, ७. व्यवहार चूर्णि, ८. दशाश्रुत-स्कन्ध चूर्णि, ९. वृहत्कल्प चूर्णि, १०. पञ्चकल्प चूर्णि, ११. ओघ नियुक्ति चूर्णि, १२ . जीत - कल्प चूर्णि, १३. उत्तराध्ययन चूर्णि, १४. आवश्यक चूर्णि, १५. दशवैकालिक चूर्णि, १६ . नन्दी चूर्णि, १७. अनुयोगद्वार चूर्णि और १८. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिचूर्णि ।
उपर्युक्त चूर्णियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
१. आचारांग चूर्णि - आचारांग के दोनों श्रुत स्कन्धों पर प्राकृत एवं संस्कृत निःसृत चूर्णि लिखी गई है। भाषा, भाव आदि की दृष्टि से चूर्णि सरल एवं सुबोध है। विषय की गंभीरता को स्पष्ट करने के लिये कहीं-कहीं पर कथाओं का आश्रय लिया है जिससे पढ़ने वाला, सुनने वाला अर्थ की वास्तविकता का बोध कर सके । आचारांग चूर्णि की यही विशेषता है ।
२. सूत्र - कृतांग चूर्णि — सूत्र - कृतांग सूत्र पर लिखी गई चूर्णि दार्शनिक सिद्धान्तों को अधिक सरल बना देती है। चूर्णिकार ने लोक कथाओं के माध्यम से सूत्र - कृतांग के विषय को अधिक सरल बना दिया है। इस चूर्णि के रचनाकार जिनदास गणि महत्तर हैं। इसमें चूर्णिकार ने विविध दार्शनिकों के मतों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत कर नय और निक्षेप की दृष्टि का सर्वत्र उपयोग किया है।
1
३. व्याख्या - प्रज्ञप्ति चूर्णि भगवती सूत्र के नाम से प्रसिद्ध यह आगम सूत्र की दृष्टि से बड़ा और विस्तृत है । परन्तु इसकी चूर्णि अति संक्षिप्त होते हुए भी शब्दों की व्युत्पत्ति को एवं सैद्धान्तिक विवेचन को स्पष्ट करने वाली है ।
४. जीवाभिगम चूर्णि— जीवाभिगम सूत्र उपांग ग्रन्थों में आता है। यह जीव-तत्त्व और अजीव-तत्त्व के विषय को प्रस्तुत करने वाला है । यह मूलतः प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया प्रन्थ है । चूर्णिकार ने जीव और अजीव तत्त्व के भेद और प्रभेदों के विस्तार के लिये चूर्णि का उपयोग किया है । जीवाभिगम चूर्णि पर मलयगिरि की टीका है। हरिभद्र और देव सूरि की लघु वृत्तियाँ इस पर लिखी गई हैं। इस पर एक छोटी अवचूर्णि थी, ऐसा भी संकेत मिलता है 1
५. निशीथ चूर्णि निशीथ चूर्णि के रचनाकार आचार्य जिनदास गणि महत्तर हैं । उपलब्ध सभी चूर्णियों में यह सबसे बड़ी व्याख्यात्मक चूर्णि है, क्योंकि यह निशीथ सूत्र, निशीथ निर्युक्ति और निशीथ भाष्य इन तीनों पर लिखी गई है। प्राकृत और संस्कृत मिश्रित व्याख्या निशीथ चूर्णि को विशेष चूर्णि भी कहते हैं ।
६. महानिशीथ चूर्णि—यह अनुपलब्ध चूर्णि है । इसकी गणना छेद सूत्रों में की जाती है। इसमें छः अध्ययन और दो चूलिकाएँ थीं, ऐसा संकेत मिलता है । वृद्धवादी, सिद्धसेन और देव गुप्त आदि आचार्यों ने इसे मान्य किया है ।
आचाराङ्ग- शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
३१
www.jainelibrary.org