SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चित किया है।"६ देवेन्द्र मुनि ने अपने विस्तृत विवेचन में शीलांक का समय विक्रम की नौवीं-दसवीं शताब्दी माना है। आचारांग वृत्ति अङ्ग आगम साहित्य का प्रथम सूत्र आचारांग सूत्र है। यह आगम विषय की दृष्टि से जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही अर्ध-मागधी प्राकृत भाषा श्रेष्ठतम आगम है। इस आगम पर नियुक्ति, भाष्य और चूर्णि जैसी टीकाएँ लिखी गई हैं जो आचारांग की विषय-वस्तु को अत्यन्त सरल एवं मार्मिक दृष्टि को प्रस्तुत करता है, परन्तु आचारांग के मूल विषय को आधार बना कर शीलांक आचार्य ने संस्कृत में वृत्ति लिखकर न केवल विषय के गाम्भीर्य को सुगम बनाया है अपितु प्रत्येक विवेचन के साथ आचारांग की मूल भावना को व्यक्त किया है। उन्होंने प्रत्येक शब्द के अर्थ को स्पष्ट किया है। अर्थ के गाम्भीर्य का खुलासा किया है तथा विविध प्रकार की व्युत्पत्तियों को भी प्रस्तुत किया है। वृत्तिकार की वृत्ति में अनेक प्रकार की विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही मैंने अपने शोध का विषय बनाया है। आचारांग वृत्ति के विविध विषयों की विवेचना में से एक विषय को ही अपने शोध क्षेत्र का कार्य बनाया जा सकता था। परन्तु वृत्ति के गाम्भीर्य को समेटने के लिये समग्र विवेचन को प्रस्तुत करने का मेरा प्रयास क्षमा योग्य नहीं होगा। मुझे आचारांग वृत्ति के विविध विषय विवेचन, भाषा, शैली, दार्शनिक विवेचन, आदि की सामग्री ने सुबोध विवरण लिखने के लिए प्रेरित किया। इसमें जो कुछ देखा गया, अनुभव किया गया या चिन्तन किया गया उसके अनुसार सामग्री को समालोचनात्मक दृष्टि से प्रतिपादन अपने आप में महत्त्वपूर्ण कार्य होगा। आचारांग वृत्ति की समग्र दृष्टि निक्षेप पद्धति पर आधारित है जो दर्शन क्षेत्र में श्रेष्यकर मानी गई है। शीलाङ्काचार्य ने इस वृत्ति में आचारांग की आचार संहिता को स्पष्ट किया सूत्र-कृतांग वृत्ति शीलाङ्काचार्य ने मूल आगम पर दार्शनिक वृत्ति लिखी है। सूत्र-कृतांग पर नियुक्ति भी लिखी गई है। यह नियुक्ति भी दार्शनिक चिन्तन से पूर्ण है। सूत्र-कृतांग सूत्र मूल आगम साहित्य का दार्शनिक ग्रन्थ माना जाता है। इसका प्रत्येक अध्ययन दार्शनिक चिन्तन को प्रस्तुत करने वाला है। इसमें सर्वप्रथम अपने मत की अर्थात् जिन मत की पुष्टि की गई है और उसी प्रसंग में दार्शनिक के चिन्तनशील विचारों एवं मान्यताओं का विवेचन है। वृत्तिकार ने प्रत्येक दार्शनिक के विचारों को प्रस्तुत करके अपने मत का स्पष्टीकरण किया है। सूत्रकृतांग के वृत्तिकार ने दार्शनिक एवं धार्मिक चिन्तन के अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से स्पष्ट किया है। विषय को सरल आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन ३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy