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________________ १०. ऋषिभाषित नियुक्ति - प्रत्येकबुद्ध द्वारा भाषित होने के कारण इस ग्रन्थ को ऋषिभाषित कहा गया है। आचार्य भद्रबाहु ने इस पर नियुक्ति लिखी थी, जो अनुपलब्ध है। अन्य नियुक्तियों का परिचय १. निशीथ निर्युक्ति — यह नियुक्ति निशीथ सूत्र पर निक्षेप पद्धति के आधार पर लिखी गई है। इसका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । यह भाष्य के साथ समाविष्ट हो गई है। इसके रचनाकार आचार्य भद्रबाहु हैं । इन्होंने इसमें श्रमणों के आचार-विचार पर पर्याप्त प्रकाश डाला है I २. पिण्ड नियुक्ति — इसके रचनाकार भद्रबाहु हैं । इन्होंने साधु जीवन की आहार विधि का वर्णन किया है। इसमें उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना प्रमाण, अङ्गार, धूम और कारण आदि दोषों का उल्लेख है । मूलाचार की गाथाएँ पिण्ड निर्युक्ति की गाथाओं से मिलती हैं । ४९ ३. ओघ निर्युक्ति-— प्रस्तुत नियुक्ति के कर्ता आचार्य भद्रबाहु हैं । यह ओघ-निर्युक्ति आवश्यक निर्युक्ति का ही एक अंश है। इसमें श्रमणों की समाचारी का उल्लेख किया गया है तथा इसमें प्रतिलेखन, उपाधि प्रतिसेवना, आलोचना और विशुद्धि आदि के विषयों का उल्लेख है । ५० ४. संसक्त नियुक्ति - आचार्य भद्रबाहु की यह लघु रचना है। इसका किसी आगम के साथ सम्बन्ध नहीं है और न ही इसका कहीं उल्लेख मिलता है । यह निर्युक्ति किस आगम पर लिखी गई है इसका भी कोई संकेत नहीं है 1 ५. गोविन्द निर्युक्ति—- इसमें दार्शनिक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। इसलिये इसे दर्शन शास्त्र या दर्शन प्रभावक शास्त्र भी कहा जाता है। १ आचार्य गोविन्द ने इस पर नियुक्ति लिखी है । ६. आराधना निर्युक्ति — आराधना नियुक्ति भी अनुपलब्ध है। ८४ आगमों में आराधनापताका नामक एक आगम ग्रन्थ भी है इसलिए यह कहा जाता है कि इसी ग्रन्थ पर आराधना निर्युक्ति लिखी गई है। आचार्य वट्टकेर ने मूलाचार में इसका उल्लेख किया है । ५२ आगमों पर जो भी निर्युक्तियाँ लिखी गई हैं, उनमें अधिकांशतः आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित हैं। ये सभी प्राकृत में हैं। इनके छन्द गाथाओं में हैं । कहीं-कहीं निर्युक्तियों में अनुष्टुप छन्द भी हैं। ये भाषा, शैली, विषय वर्णन एवं मूल सूत्रों के अर्थों की गंभीरता को उद्घाटित करने वाली निर्युक्तियाँ व्याख्या साहित्य की अनुपम धरोहर हैं। इस तरह नियुक्ति ग्रन्थ आगमों के रहस्य को उद्घाटित करने वाले आगम ग्रन्थ हैं। इनके अध्ययन अनुसंधान से धर्म-दर्शन - संस्कृति आदि के तत्त्व सामने आ २६ आचाराङ्ग- शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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