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के साथ इसका मिश्रण हो गया है। इसमें धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक चित्रण के साथ लोक कथाओं का भी उल्लेख है।
६. दशाश्रुत-स्कन्ध नियुक्ति यह नियुक्ति मूलतः द्रव्य और भाव्य समाधि के चिन्तन को प्रस्तुत करने वाली है। इसकी वर्णनात्मक शैली निक्षेप पद्धति पर आधारित है। इसमें नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, अधा, अवं, चर्या, वसति, संयम, प्रग्रह, योध, अचल, गणन, संस्थान और भाव-ये पन्द्रह निक्षेप विषय की गंभीरता को स्पष्ट करते हैं। इसमें पर्दूषण के पर्दूषण, परियुवशमना, परिवसना, वर्षावास, स्थापना और ज्येष्ठ ग्रह आदि के नामों को भी गिनाया गया है। इसी तरह चित्र उपासका, प्रतिमा आदि शब्दों का भी निक्षेप पद्धति के साथ विवेचन किया गया है।
७. उत्तराध्ययन नियुक्ति प्रस्तुत नियुक्ति में अनेक पारिभाषिक शब्द दिये गए हैं। कुछ शब्दों के पर्यायवाची भी इस नियुक्ति में हैं। इसमें ६०७ गाथाएँ हैं। नियुक्तिकार ने इसके प्रारम्भ में उत्तर और अध्ययन शब्दों की व्याख्या की है। श्रुत और स्कन्ध को स्पष्ट किया है। शिक्षाप्रद कथाओं के कथानकों ने इसके गाम्भीर्य को अधिक रुचिपूर्ण बना दिया है। सूक्ति वचनों और भावों की विशेषताओं के कारण यह नियुक्ति कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण बन गई है।
८. आवश्यक नियुक्ति-इसके रचनाकार आचार्य भद्रबाहु हैं । आचार्य भद्रबाहु की यह प्रथम कृति है। विषय की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। आचार्य वट्टकेर ने मूलाचार में भी इस नियुक्ति का उल्लेख किया है। इससे जान पड़ता है कि आवश्यक नियुक्ति आवश्यक सूत्र पर लिखी गई एक प्राचीन रचना है।८
नियुक्ति में गाथाएँ कितनी हैं, यह निश्चित नहीं है परन्तु १६३७ गाथाएँ स्वीकार की गई हैं, हरिभद्र सूरि ने अपनी वृत्ति में २३८६ गाथाओं का उल्लेख किया है। गाथाओं के अतिरिक्त इसमें अनुष्टुप छन्द भी हैं। भाषा की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण नियुक्ति है।
इस नियुक्ति में ज्ञानवाद, गणधरवाद और निह्नववाद के दार्शनिक विषयों का संक्षिप्त परिचय है। इसमें चिकित्सा सम्बन्धी विवेचन, अर्थशास्त्र की आर्थिक दृष्टि, विविध कलाओं के साथ शिल्पकला, लेखन कला, गणित, ज्योतिष आदि कलाओं का भी उल्लेख है। ....
९. दशवैकालिक नियुक्ति प्रस्तुत नियुक्ति में श्रमण-श्रगणियों के आचार-विचार पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इसमें ३७१ गाथाएँ हैं। इसके रचनाकार भद्रबाहु हैं। मूलतः यह नियुक्ति अहिंसा, संयम और तप की प्रधानता को प्रतिपादित करने वाली है। इसमें साधक की साधना मार्ग का भी उल्लेख है। नियुक्तिकार की नियुक्तियों में लौकिक और धार्मिक कथाओं का भी उल्लेख है जो प्रश्नोत्तर शैली में है। कहीं-कहीं पर इनमें दर्शन-शास्त्र की विशेषताओं को भी देखा जा सकता है। आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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