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क्रमशः आवश्यक नियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति, बृहत्-कल्प नियुक्ति और आचारांग नियुक्ति के ही अंश हैं।" आराधना-नियुक्ति का उल्लेख भी मिलता है।४५ इन नियुक्तियों के अतिरिक्त भी संशक्त नियुक्ति और गोविन्द नियुक्ति का उल्लेख भी मिलता है। वर्तमान में ये अनुपलब्ध हैं। नियुक्तियों का परिचय
१. आचारांग नियुक्ति-आचारांग सूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों पर नियुक्तियाँ प्राप्त होती हैं। इसके नियुक्तिकार आचार्य शीलांक हैं, जिन्होंने २७४ गाथाओं के आधार पर आचारांग के विषय की गंभीरता का पाण्डित्यपूर्ण परिचय दिया है। 'अङ्गाणा कि सारो? आचारो।' इस तरह के अर्थ गांभीर्यपूर्ण व्याख्या ने आचारांग की विशेषता का परिचय दे दिया।
२. सूत्रकृतांग नियुक्ति निक्षेप पद्धति पर आधारित यह नियुक्ति दार्शनिक विषय को आगे बढ़ाती है। इसमें क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और बैनयिक के दार्शनिक मत का विवेचन है। इसके प्रारम्भ में सूत्रकृतांग सूत्र की व्याख्या भी प्रस्तुत की गई है। इसमें गाथा षोडष श्रुत-स्कंध, विभक्ति, समाधि, मार्ग, आदान, ग्रहण, अध्ययन, पुण्डरीक, आहार, प्रत्याख्यान, सूत्र आदि शब्दों पर भी चिन्तन किया गया है। इसके रचनाकार शीलाङ्काचार्य हैं।
३. सर्य-प्रज्ञप्ति निर्यक्ति-यह नियुक्ति भद्रबाहु द्वारा रचित मानी गई है, परन्तु मलयगिरि ने अपनी टीका में इसका संकेत किया है। अतः इस पर कुछ कहा जाना संभव नहीं है। परन्तु इतना अवश्य है कि यह सूत्रों की व्याख्या को प्रस्तुत करने वाली नियुक्ति है।
४. व्यवहार नियुक्ति-इस नियुक्ति के रचनाकार भद्रबाहु माने गए हैं। व्यवहार नियुक्ति, व्यवहार भाष्य की गाथाओं के साथ मिश्रित हो गई है। इसमें मूलतः श्रमणों के आचार-विचार एवं जीवन-पद्धति पर प्रकाश डाला गया है। संक्षिप्त में लिखी गई यह प्राकृत नियुक्ति सिद्धान्त के रहस्य को प्रतिपादित करने वाली है।
५. बृहत्कल्प नियुक्ति श्रमण और श्रमणियों की जीवन-पद्धति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने वाली यह नियुक्ति निक्षेप पद्धति से समस्त विवेचन को प्रस्तुत करती है। आचार-विचार, आहार, ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि का संक्षिप्त परिचय इसकी प्रमुख भूमिका है। इसमें ग्राम क्या है? नगर क्या है? पत्तन क्या है? द्रोणमुख क्या है ? निगम क्या है? और राजधानी क्या है ? इत्यादि विवेचन राजनीतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करने वाला है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, भाषा, शिल्प, ज्ञान, दर्शन और चारित्र-इन बारह निक्षेपों से आर्य पद पर विचार किया गया है। इस तरह नियुक्ति विषय को बृहद् रूप से प्रस्तुत करने वाली टीका है। नियुक्ति संस्कृत टीका के साथ जुड़ गई है। बृहत् कल्प भाष्य या लघु भाष्य
आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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