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सकते हैं। इनका मंथन आज के विषम वातावरण में विभिन्न दृष्टिकोण को प्रस्तुत कर सकता है। भाष्य-परिचय
नियुक्ति की तरह भाष्य भी गाथा छन्द में निबद्ध हैं। विषय विवेचन की अपेक्षा भाष्य विस्तार शैली से युक्त हैं। इनका समय चौथी-पाँचवीं शताब्दी माना गया है। डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ने भाष्य का यही समय दिया है।५३ डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने भाष्य ग्रन्थों का समय ई. सन् की चौथी-पाँचवीं शताब्दी निर्धारित किया है।५४ मुनि जिन विजय जी ने विशेषावश्यक भाष्य के आधार पर भाष्य ग्रन्थों का रचनाकाल विक्रम सम्वत ६६६ माना है।५ गणधरवाद की प्रस्तावना में दलसुख मालवणिया ने मुनि जिन विजय की इस प्रस्तुति पर असम्मति व्यक्त की है। उन्होंने भाष्य के रचनाकाल के विषय में कही गई बात का खुलासा करते हुए यह कथन किया कि विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं के आधार पर जो रचनाक्रम निर्धारित किया है वह ठीक नहीं है। उनकी दृष्टि से भाष्य का समय शक सम्वत् ५३१ उचित माना गया है।५६ भाष्यकारों में संघदासगणि और जिनभद्र क्षमाश्रमण विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इनका समय सातवीं शताब्दी माना गया है।"
. भाष्य मूल रूप से आगम सूत्र ग्रन्थों के विषय को समझाने वाले प्रमुख व्याख्या सूत्र हैं। नियुक्तियों की तरह भाष्य अर्धमागधी प्राकृत में हैं। परन्तु शौरसेनी
और मागधी के प्रयोग भी भाष्य प्रन्थों में हुए हैं। भाष्य विषय की विस्तार के साथ तत्त्व दृष्टि को भी प्रतिपादित करने वाले हैं, इन्हें ज्ञान का महासागर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। भाष्य दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि तथ्यों से भरे पड़े हैं। मुख्य रूप से निम्नलिखित भाष्य अतिप्रसिद्ध हैं
१. कल्प भाष्य, २. पञ्च कल्प भाष्य,३. जीतकल्प भाष्य, ४. उत्तराध्ययन भाष्य, ५. आवश्यक भाष्य, ६. दशवैकालिक भाष्य,७. निशीथ भाष्य और, ८. व्यवहार भाष्य ।
१. कल्प भाष्य-वृहत् कल्प भाष्य और लघु कल्प भाष्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। भाष्य सभी दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं। संघदासगणी ने इसकी रचना की। वृहत् कल्प सूत्र के विषय विस्तार को प्रतिपादित करने के लिए लघु भाष्य नामक टीका लिखी गई, जिसमें ६४९० गाथाएँ हैं। यह छ: उद्देश्यों में विभक्त है। इसकी प्रारम्भिक पीठिका में ८०५ गाथाएँ हैं, जो सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
भाष्य श्रमण जीवन के आचार-विचार को, उनकी दैनिकचर्या को एवं आहार विधि को निरूपित करने वाला है। इसमें उत्सर्ग मार्ग और अपवाद मार्ग का भी विवेचन है। चिकित्सा पद्धति, राजनीति, धार्मिक एवं दार्शनिक विषय भी इसके अन्तर्गत समाविष्ट हैं। इसके अनेक प्रसंग मनोवैज्ञानिक दृष्टि को भी प्रस्तुत करने वाले हैं। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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