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सुसज्जित है। आगम में गद्य और पद्य के अनूठे प्रयोग हैं। इसी प्रणाली का अनुगमन ही आगे चलकर चम्पू काव्य आदि में हुआ है। समकालीन साहित्यिक प्रवृत्तियों के बीज जैनागमों में बहुत स्पष्टता के साथ उभरे हैं। जैनागमों में विविध भाषाओं का विवेचन है। इनमें लोक भाषाओं का भी प्रयोग है। प्राकृत, शौरसेनी, अर्धमागधी, मागधी, महाराष्ट्री, चूलिका, पैशाची, ठकी आदि अपभ्रंश के रूप भी हैं। प्राकृत की प्रकृति की इसी प्रवृत्ति से ही उसके गौरव की श्रीवृद्धि हुई है।
__ आगमों ने भारतीय दर्शनों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। आस्तिक और नास्तिक विचारों के बीच के सेतु का नाम ही जैन दर्शन है। जहाँ आस्तिक दर्शनों की तरह उसने शाश्वत आत्मा को स्वीकार किया है तो नास्तिक दर्शनों की भाँति उसने ईश्वर को नहीं नकारा, किन्तु परस्पर ब्रह्म के उस विचार को निरूपित किया जिसमें ईश्वर को सर्वव्यापी कर्ता रूप माना है।
जैनागमों का दर्शन न केवल पदार्थ का दर्शन है और न कोरा आत्मवाद है। सापेक्ष कथंचित् वाद की संभावनापरक शब्दावली में ही वह व्याख्यायित है।
शब्द और अर्थ की अवधारणा के बारे में भी जैनागमों की अपनी मौलिक संस्थापना है। शब्द की जड़वादी व्याख्या करके पाश्चात्य परमाणुवाद के साथ उसने अपना कंधा जोड़ लिया। वही शब्द के अर्थबोध को उसकी भाव शक्ति स्वीकार कर वैदिक स्फोट दर्शन के साथ अपना रिश्ता जोड़ लिया। इस तरह विभिन्न विचारों और व्यवहारों को एक साथ जोड़ कर रखने की अपूर्व क्षमता इस दर्शन के पास
- जैनागमों की जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण देन है, वह है-अनेकांतिक विचार एवं व्यवहार पद्धति। अनेकान्त जैन विचार का मानव संस्कृति को प्रदत्त सर्वोत्तम उपाय है। आज सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक पर्यावरण पर एकांतवाद एवं आग्रहवाद के काले बादल मँडरा रहे हैं। उसको अनेकांतीय जैन दिग्बोध ही हटा सकता है। द्वन्द को अन्ध दर्शन का सम्यक् नेत्र अनेकान्त ही हो सकता है।
प्रस्तुत अध्याय में जैनागमों के परिणाम से लगा कर जैनागमों की वैचारिक पृष्ठभूमि तक को स्पष्ट करने का एक विनम्र प्रयास किया है। इस अध्याय में श्रमण सांस्कृतिक संस्थानों के साथ उन सामाजिक प्रसाधनों के बारे में भी विवरण प्रस्तुत किया गया है। आज की इस परिस्थति में अतीत के वे सभी संस्थान प्रेरणास्पद हो सकते हैं। मूल्यों की माला के बिखरते मोती आज उस सूत्र की खोज में हैं जो उन्हें जीवन के सुमेल से जोड़कर अपने साथ रख सकें। ___ . आगम का नैतिक दर्शन आज की संक्रमणकालीन स्थितियों के लिये वरदान है; क्योंकि मानवता महाविनाश के कगार पर खड़ी है और इस महाविनाश को महासृजन में बदलना ही जैन आगम दर्शन का अभीष्ट है। आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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