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प्रस्तुत सभी प्रकीर्णक आत्म आलोचन की दिशा को प्रस्तुत करने वाले हैं। अलग-अलग रूप में प्रत्येक प्रकीर्णक की सामग्री अनुसंधान का विषय बन सकती है क्योंकि धर्म, दर्शन, समाज संस्कृति आदि की सामग्री इसके विषय को नया रूप दे सकती है।
उपसंहार-प्रज्ञाशील मानव मस्तिष्क के लिये साहित्य सदैव महत्त्वपूर्ण अभिप्रेरक रहा है। श्रुति से लगा कर आख्यायिका तक की यात्रा में क्लान्त मानव को साहित्य की छाया में ही एक अनूठी आत्मशान्ति व विश्रान्ति मिली है। कथा को इन रहस्यों से लगाकर दर्शन के निगूढ़ प्रश्नों का समाधान साहित्य की गौरवमयी परम्परा से प्राप्त हुआ है।
__ जैनागम श्रमणों के उत्कृष्ट आचार-विचार, वृत, नियम, सिद्धान्त, स्वमत संस्थापन तथा परमत निरसन प्रभृति अनेक विषयों पर विस्तार से विश्लेषण करता है।
__ आगमों के गहन रहस्य जब विस्मृति के अञ्चल में सिमटने लगें तभी वाचनाओं की व्यवस्था कर जैनाचार्यों ने इसका संरक्षण करके न केवल जैन धर्मीय प्रभावना की अपितु साहित्य धर्म का भी सुन्दर निर्वाह किया है।
जैन आचार शास्त्र के विविध विधानों की व्याख्या के साथ जिन कल्प, स्थविर कल्प के स्वमत विभाजन का विवेचन आगमों में है। इनमें क्रियावादी, अक्रियावादी, नियतिवादी, कर्मवादी आदि तीन सौ तिरेसठ मत-मतान्तरों का सामाजिक महत्त्व भी दर्शाया गया है तथा उनके प्रभाव की साक्षी ये आगम देते हैं। गणधरवाद, निह्वववाद आदि क्षिप्तचित तथा दीप्तचित श्रमणों की चिकित्सा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में सामने आती है। साथ ही क्षिप्तचित और दीप्तचित होने के कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है।
जैन आगमों का जब अवधानपूर्वक अनुशीलन करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि इनमें आहार, शिल्प कर्म, कृषि, लेखन, उपासना, चिकित्सा, अर्थशास्त्र, यज्ञ, उत्सव, विवाह आदि संस्थाओं का भी एक व्यवस्थित वर्णन प्राप्त होता है। इनमें समाज शास्त्र के अनेक विषयों का विशद वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त नगर योजना में ग्राम, नगर, खेट, कर्वटक, मंडप, पत्तन, आकर, द्रोण मुख, निगम और राजधानी का स्वरूप भी व्यक्त हुआ है।
इनमें गृह निर्वाण, गुण अट्ट-अट्टालक आदि अनेक प्रकार के गृहों का कोष्टागार, भांडागार, पानागार, क्षीणगृह गजशाला, मानसशाला आदि गृह निर्वाण रूप वास्तु शिल्प की विवेचना भी सुसंबद्ध रूप से प्राप्त होती है।
आगम साहित्य का दार्शनिक और आचार शास्त्रीय दृष्टि से महत्त्व ही नहीं है, अपितु साहित्यिक दृष्टि से भी उनका अनुपम स्थान है। विविध छंदों के प्रयोग के साथ उत्प्रेक्षा रूपक उपमा श्लेष. अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों से भी आगम
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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