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__आगम साहित्य की विशालता केवल धर्म, दर्शन और आचार तक ही सीमित नहीं है अपितु इनमें सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, स्थापत्य कला, वास्तु कला, लिपि विज्ञान, गणित, ज्योतिष आदि विषयों का भी उल्लेख मिलता है। कोई भी आगम ऐसा नहीं है जिनमें केवल एक ही विषय हो। आगम तो विविध विषयों के केन्द्रबिन्दु हैं। अतः विषय की प्रधानता के कारण आगम पूर्व की तरह आज भी अत्यधिक मानवीय मूल्यों की स्थापना करने वाले हैं। इन आगमों की समीचीनता का दिग्दर्शन कराने के लिए व्याख्याकारों ने विविध व्याख्याओं के माध्यम से आगम की सूक्ष्मता को सहज एवं बोधगम्य बना दिया है। परिणामस्वरूप आज . उन व्याख्या साहित्य की दृष्टि शोध का विषय बन गई है। व्याख्या साहित्य की शोध प्रक्रिया का यह प्रथम प्रयास ही मेरा होगा; क्योंकि इससे पूर्व मूल. सूत्रों पर बहुत कुछ अनुसंधान किया जा चुका है और हो ही रहा है। इसकी प्रथम प्रस्तुत आचारांग वृत्ति की समालोचना प्रस्तुत करते हुए आगम भी एक अनुपम सेवा होगी। आगम के ग्रन्थों पर जो व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई हैं उनका भी संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक है जो अलग-अलग रूपों में व्याख्या साहित्य की विस्तार योजना को आगे बढ़ाएगा।
आगम का व्याख्या साहित्य
अर्धमागधी आगम साहित्य के रहस्य को व्याख्या साहित्य में विपुल रूप से देखा जा सकता है, इस पर समय-समय में अनेक प्रकार की व्याख्याएँ लिखी गई हैं, इनमें नियुक्ति, भाष्य, महाभाष्य, चूर्णि, टीका, विवरण, वृत्ति, दीपिका, अवचूरी, अवचूर्णि, विवेचन, व्याख्या, छाया, पञ्जिका, अक्षरार्थ, टब्बा, भाषा, टीका, वचनिका, अंग्रेजी अनुवाद आदि विपुल साहित्य उपलब्ध है। इस साहित्य के विस्तृत विवेचन को मूल रूप से पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं
१. नियुक्ति, २. भाष्य, ३. चूर्णि, ४. संस्कृत टीका और ५. लोक भाषा में लिखित व्याख्या साहित्य।
__ आगमों पर लिखा गया सम्पूर्ण व्याख्या साहित्य सूत्रों से जुड़ा हुआ है।३५ व्याख्याकारों ने आगम के रहस्य का उद्घाटन करने के लिए व्याख्याओं का आश्रय लिया है। इनके अभाव में आगम का रहस्य नहीं खुल पाता और न इनके पारिभाषिक शब्दों का अर्थ ही स्पष्ट हो पाता। अतः आगमों पर लिखा गया व्याख्यात्मक साहित्य सभी दृष्टियों से उपयोगी है। आगमों के विषय की गम्भीरता को प्रतिपादित करने वाली अनेक संग्रहणियाँ भी लिखी गई हैं। संग्रहणियों के रचनाकार आर्य-कालक माने गये हैं।३७ नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि का संक्षिप्त परिचय अग्र प्रकार है
आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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