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________________ में दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी सूत्र, अनुयोग द्वार सूत्र और आवश्यक सूत्र आते हैं। पिण्ड नियुक्ति आदि को भी मूल-सूत्रों में रखा गया है । यद्यपि उत्तराध्ययन, आवश्यक और दशवैकालिक सूत्रों को ही मूल-सूत्र मानते हैं, पिण्ड नियुक्ति और ओघ नियुक्ति को इसमें नहीं रखा जाता है। पिण्ड नियुक्ति दशवैकालिक नियुक्ति का और ओघ नियुक्ति आवश्यक नियुक्ति का अंश है ऐसा विद्वानों का अभिमत है। कुछ विद्वान पिण्ड नियुक्ति को मूल सूत्रों में सम्मिलत कर मूल सूत्रों की संख्या चार मानते हैं और नन्दीसूत्र एवं अनुयोगद्वार को चूलिका सूत्र मानते हैं ।२२ इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। १. दशवैकालिक-सूत्र-साधु जीवन की जीवन साधना को प्रस्तुत करने वाला यह सूत्र ग्रन्थ है। इसमें दस अध्ययन हैं और दो चूलिकाएँ हैं। काल से निवृत्त होकर विकाल में अर्थात् संध्या समय में इसका अध्ययन किया जाता था। इसलिए इसे दशवैकालिक कहा गया है ।२२ इस पर जिनदास-गणि ने चूर्णि लिखी है। इसके अतिरिक्त आधुनिक विचारशील विद्वानों ने समय-समय पर धम्मपद, संयुक्त-निकाय आदि से तुलना की है। मुनि पुण्यविजय जी ने इस सूत्र के विषय में कहा है कि यह पिण्डेषणा के पश्चात् कहा जाने लगा होगा।२४ हरिभद्र सूरि ने इस परं वृत्ति रच कर इस सूत्र को अधिक सरल बना दिया है । यद्यपि यह सूत्र इतना सरल एवं सुबोध है कि पढ़ने वाला या सुनने वाला कोई भी व्यक्ति इसे सुगमता से कंठस्थ कर सकता है। भाषा, छन्द आदि की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। २. उत्तराध्ययन-सूत्र-उत्तराध्यन एक सैद्धान्तिक सूत्र ग्रन्थ है, जिसमें प्रारम्भ से लेकर अन्त तक आध्यत्मिक विषय का समावेश है। यह विनय से प्रारम्भ होता है। इसका अन्त जीव और अजीव की विभक्ति से होता है इसके ३६ अध्ययन ही उपदेश प्रधान हैं जिसमें संयम, तप, त्याग की भावना निहित है। यह धम्म पद और गीता की तरह महनीय है। महाभारत, धम्म-पद, गीता और सुत्त निपात्त आदि के साथ इस सूत्र की तुलना की गई है। इसमें जहाँ उपदेशों की प्रधानता है वहीं दृष्टान्तों की भी प्रधानता है। कई दृष्टान्त संवाद रूप में हैं जो निश्चित ही जन-जन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। यह सूत्र धार्मिक काव्य होते हुए भी काव्य साहित्य की सामग्री से भी परिपूर्ण है। रस, छन्द, अलङ्कार, भाषा आदि की दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण है। इस पर नेमिचन्द्र सूरि ने 'सुख बोधा' टीका रची है। इस पर आधुनिक विचारकों ने भी अपना विशेष अनुसंधान करके इसकी विशेषताओं को शिक्षा जगत के लिए उपयोगी बतलाया है। मेरी दृष्टि से यह सूत्र शिक्षक, शिक्षा और शिष्य के साथ समन्वय को स्थापित करने वाला है। ३. नन्दी-सूत्र-इस आगम में मूल रूप से संघ को महत्त्व दिया गया है। इसमें तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख है। गणधरों की नामावली है। संघ के नायक गणधर आदि की इसमें स्तुति की गई है। सूत्र रूप में अभिनिबोधज्ञान, श्रुतज्ञान, १४ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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