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________________ श्रीचन्द्रसूरि ने इस पर टीका लिखी है निरयावलि सूत्र में दस अध्ययन हैं जिनमें अलग-अलग कथानक उनके नरक सम्बन्धी विषय को प्रतिपादित करते हैं। नरक की अवधि पूर्ण करने के बाद वे कहाँ पैदा हुए और वहाँ से निकल कर किस तरह मुक्ति पथ के मार्ग पर प्रवृत्त हुए, इत्यादि विषय का प्रतिपादन इसी ग्रन्थ में है। इसमें मात्र महापुरुषों के जीवन-चरित्रों का उल्लेख नहीं है, अपितु यह उनके जन्म-स्थान, राज्य, राज्याभिषेक, पुत्र, कुटुम्ब, परिवार, सेना आदि सांस्कृतिक सामग्री को प्रस्तुत करने वाला भी है। मूलतः कथानक वस्तु तत्त्व का विवेचन भी करता है। प्रत्येक प्रश्न और उनके उत्तर कथानकों से जुड़ हुए अनन्त शक्ति की ओर प्रेरित करते हैं। सर्वत्र कथानक भी गति मुक्ति पथ की ओर ले जाने वाली है। यह नरक की अवस्था से लेकर मुक्ति पथ की अवस्था तक का विवेचन करने वाला ग्रन्थ है। ९. कल्पावंतसिका-सूत्र-कल्प/देवलोक को प्राप्त होने महापुरुषों के जीवन-चरित्र को प्रतिपादित करने वाला यह आगम ग्रन्थ है। मूलतः इसमें श्रेणिक के दस पौत्रों का वर्णन है जो कल्पावंतस तक की देव पर्याय के उपरान्त मनुष्य आयु के सुख को भोग कर मुक्ति मार्ग को प्राप्त होंगे। १०. पुष्पिका-सूत्र-इस्त्र सूत्र में दस अध्ययन हैं- (१) चन्द्र, (२) सूर्य, (३) महाशुक्र, (४) बहुपुत्रिया, (५) पूर्णभद्र, (६) मणीभद्र, (७) दत्त, (८) बल, (९) शिव और (१०) अनादीत् । इन दस देवों के पूर्व भव और उनकी साधना का वर्णन इस सूत्र में है। ये सभी देव पुष्पक विमान में बैठ कर महावीर के दर्शन के लिए उनके समवशरण में आते हैं। उन्हीं से सम्बोधित पूर्व भय की जानकारी गणधर द्वारा पूछे जाने पर महावीर स्वयं देते हैं। इस तरह इस सूत्र में दस देवों के पूर्व भव के साथ उनके द्वारा की गई साधना का भी उल्लेख है। ११. पुष्प-चूलिका-सूत्र यह सूत्र दस अध्ययनों में विभक्त है, इसमें श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी आदि दस देवियों के पूर्व भव का विवेचन है तथा उनके द्वारा की गई साधना का भी उल्लेख है। १२. वृष्णिदशा-सूत्र इस आगम में १२ अध्ययन हैं, जिनमें वृष्णि वंश के बारह पुत्रों का नेमी कुमार के पास दीक्षित होने का उल्लेख है। ये बारह पुत्र दीक्षा के उपरान्त साधना करके स्वार्थ सिद्धी विमान को प्राप्त हुए तथा वहाँ के विविध भोगों को भोगते हुए महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मुक्ति पथ को प्राप्त करेंगे। इसका सम्यक् विवेचन इस सूत्र में है। मूल-सूत्र साहित्य-साधु के मूल और उत्तर गुणों को प्रतिपादित करने वाले ये मूल सूत्र उपांग-ग्रन्थों की तरह उपयोगी हैं। इनमें साधु के आचार-विचार, विहार एवं उनके मूल नियमों का उपदेश दिया गया है। इसलिए ये मूल सूत्र हैं। साधु के मूल गुण २८ हैं। अनशन आदि तप उत्तर गुण हैं, उनके कारण होने से वृतों में मूल गुण का व्यपदेश होता है। इसलिए मूल-सूत्र कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं । मूल-सूत्रों आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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