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केवलज्ञान को प्राप्त करके समस्त कर्मों का अन्त किया है या समस्त कर्म बन्धनों से मुक्त हुए हैं, उन महान् पुरुषों की जीवनचर्या इस अङ्ग ग्रन्थ में है।
इस आगम ग्रन्थ के अध्ययन वर्ग के रूप में विभक्त हैं। अध्ययन का समूह ही वर्ग है। इसमें वर्तमान समय में होने वाले (महावीर के समय में होने वाले) ९० श्रमण-श्रगणियों का वर्णन है। यह आगम सांस्कृतिक, धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
९. अनुत्तरोपपातिक प्रस्तुत आगम में प्रभावक दिव्य साधकों की ज्योतिर्मय साधना का वर्णन है। अनुत्तर का अर्थ है जिससे कोई प्रधान, श्रेष्ठ या उत्तम नहीं है और उपपात'६ का अर्थ है-जन्म ग्रहण करना।
इसका साभिप्राय यह है कि देवलोक के श्रेष्ठ विमानों में जन्म लेने वाले साधक। ये अनुत्तर विमान पाँच हैं
१. विजय, २. वैजयन्त, ३. जयन्त, ४. अपराजित और ५. सर्वार्थ सिद्धि ।
इन विमानों को प्राप्त करने वाले सभी देव सम्यग् दृष्टि होते हैं और मनुष्यभव को प्राप्त. करके सर्व कर्म-बन्धन से मुक्त-उन्मुक्त हो जाते हैं।
इसमें दस अध्ययन हैं। यह तीन वर्गों में विभक्त है। तीन वर्गों में ३३ दिव्य पुरुषों के जीवन का वर्णन है। प्रथम और द्वितीय वर्ग में क्रमश: श्रेणिक राजा के आत्मज जालि कुमार आदि के १० अध्ययन और दीर्घसेन आदि के १३ अध्ययन हैं। तृतीय वर्ग में
१. धन्य-धन्ना अणगार, २. सुनक्षत्र, ३. ऋषिदास, ४. पेलक, ५. राम-पुत्र, ६. चन्द्र कुमार, ७. पोष्ठी-पुत्र, ८. पेढाल कुमार, ९. पोटिल कुमार और १०. बहल कुमार के दस अध्ययन हैं।
ये सभी साधक अपने साधना काल को सम्पूर्ण करके अनुत्तर विमान में गये हैं और वहाँ से च्युत होकर मनुष्यभव को प्राप्त करेंगे और पुनः साधना करके सिद्ध बुद्ध एवं मुक्त बनेंगे। यह सूत्र आकार की दृष्टि से लघु है। इसके प्रत्येक वर्ग में पहले अध्ययन का विस्तार से वर्णन है। शेष अध्ययनों की कथाओं में संकेत मात्र किया गया है। यह देवलोक को प्राप्त होने वाले पुरुषों के जीवन का समस्त चित्रण करने वाला आगम है। इसमें ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए धर्मोपदेश शैली को आधार बनाया गया है।
१०. प्रश्नव्याकरण सूत्र-इस आगम में प्रश्नों का स्व-समय और पर-समय का निरूपण करने में प्रवीण प्रत्येक बुद्ध श्रमण द्वारा अनेकान्त भाषा में दिये गये उत्तरों की या भगवान् महावीर द्वारा जगत के जीवों के हित के लिये किये समाधान की प्ररूपणा की गई है। इस आगम में दस द्वार हैं-पहले पाँच द्वारों में हिंसा आदि पाँच आसवों का और अन्तिम में अहिंसा, सत्य आदि पाँच संवरों का वर्णन है। प्रश्न का अर्थ सामान्य रूप से जिज्ञासा होता है, परन्तु यह आगम विद्या विशेष को
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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