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अध्ययन है। उसकी विभिन्न कथाएँ, उपकथाएँ, दृष्टान्त एवं उदाहरण श्रद्धा को उत्पन्न करने वाले हैं
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इस तरह यह ज्ञाताधर्मकथा अङ्ग ग्रन्थ जहाँ समस्त कथाओं, उपकथाओं, दृष्टान्तों के कारण कथा साहित्य का प्रारम्भिक चिह्न है, वहाँ यह सांस्कृतिक सामग्री का निचोड़ प्रस्तुत करने वाला भी है। इसमें दृष्टान्त, रूपक और कथाओं में विविध नगर, गाँव, उद्यान, वन, नदी, तालाब, राजा, मंत्री, राजपुत्र, श्रेष्ठी, श्रेष्ठीपुत्र, पुत्र-पुत्रवधू माता-पिता, दास-दासी आदि की पर्याप्त सामग्री इसके विषय की गम्भीरता को प्रतिपादित करने वाली है ।
७. उपासक दशांग सूत्र—- उपासक लोक में पूजित होता है; क्योंकि उसका साधना मार्ग धर्म मार्ग के बारह व्रतों पर आधारित होता है । श्रावक में अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षा व्रत है जो इन व्रतों की आराधना एवं पूर्ण हिंसा आदि व्रतों के त्यागी हैं, वे श्रमण निर्ग्रन्थों की उपासना करते हैं । इसलिए वे गृहस्थ धर्म के गुणों पर चलने वाले आंशिक हिंसादि व्रतों के त्यागी श्रमणोपासक हैं, श्रावक हैं या उपासक
हैं ।
उपासक-दशांग सूत्र दस अध्ययनों में विभक्त है
१. आनन्द, २. कामदेव, ३. चूलनी पिता, ४. सुरादेव, ५. कुण्डकौलिक, ६ : शकडाल पुत्र, ७. महाशतक, ८. नन्दनी पिता, ९. शालिनी पिता और १० . तेतलीपिता (शालीपुत्र)
ये दस महावीर के उपासक हैं इसलिए इसका नाम उपासक दशांग सूत्र है
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आनन्द आदि दस उपासकों के वैभव, भोग-विलास, धन-धान्य आदि का वर्णन भी कथानकों के प्रसंग में आगया है । ये सभी श्रावक गृहस्थ धर्म में रत श्रावकों के गुणों से अनभिज्ञ थे। जैसे ही महावीर का विचरण उस प्रान्त या नगर
हुआ, उस प्रान्त के नर-नारी धर्म श्रवण हेतु उपस्थित हो जाते थे । उन्हीं के बीच में कुछ ऐसे श्रावक भी धर्म श्रवण करते हैं जो सभी दृष्टियों से समृद्ध थे तथा जो भोग-विलास आदि में डूबे हुए थे । वे भी धर्मकथा या धर्मोपदेश से प्रेरित होकर सर्वप्रथम श्रावक व्रतों को अङ्गीकार कर अपने जीवन की यात्रा का शुभारम्भ करते थे। महावीर के साधना मार्ग पर चल श्रुत अभ्यास, तपश्चर्या, यम-नियम आदि व्रतों को धारण करना प्रमुख उद्देश्य था । नियमानुसार गृहस्थ धर्म में रत १५ कर्मादानों से रहित अपनी जीविका चलाते थे । मूलतः ये आनन्द आदि दस ऐसे श्रावक थे, जिन्होंने साधना मार्ग को अपनाकर समाधिकरण को धारण किया, तदुपरान्त विविध ऐश्वर्य के साथ देवलोक को प्राप्त हुए ।
८. अन्तकृतदशांग - सूत्र - संसार का अन्त करने वाले ९० महान् आत्माओं के जीवन का चित्रण इस आगम ग्रन्थ में है, जिन्होंने अपने जीवन के अन्तिम समय में
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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