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विवेचन है। ७८३ सूत्रों में विभक्त यह सूत्र ग्रन्थ जीव-अजीव आदि के भेद और उनके गुण पर्यायों की संख्याओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है।
४. समवायांग-एक संख्या से लेकर दस तक की संख्या विविध स्थानों को निर्धारित करने वाली है। दस के अतिरिक्त दो. दो संख्या वाले स्थान भी इसमें हैं। इस तरह यह संख्याओं के आधार पर जीवादि द्रव्यों की प्ररूपणा करने वाला महत्त्वपूर्ण अङ्ग ग्रन्थ है। एक से लगा कोड़ाकोड़ि की संख्याओं के आधार पर विषय की वस्तु का विवेचन किया गया है।
. एक वस्तु में आत्मा, दो वस्तु में जीव और अजीव राशि, तीन में तीन गृहित, चार में चार कषाय, पाँच में पञ्च महाव्रत आदि के स्थानों का निरूपण इस ग्रन्थ में है। समवाय समुदाय को कहते हैं।
५. व्याख्याप्रज्ञप्ति विभिन्न प्रकार की प्ररूपणाओं को प्रतिपादित करने वाला यह अङ्ग ग्रन्थ प्रश्नोत्तर शैली के लिए प्रसिद्ध है। इसमें जीवादि पदार्थों की व्याख्याओं का प्ररूपण किया गया है। इसमें ३६००० प्रश्नों के उत्तर हैं जो भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न व्यक्तियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के समाधान हैं। प्रश्नकर्ता गौतम गणधर हैं
और समाधानकर्ता भगवान् महावीर। इसमें दार्शनिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, तात्विक एवं गणित सम्बन्धी विषयों का विवेचन प्रश्नोतर रूप में ही है।
भगवती सूत्र के रूप में प्रसिद्ध यह व्याख्याप्रज्ञप्ति सांस्कृतिक सामग्री को प्रस्तुत करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ कहा जा सकता है; क्योंकि इसमें नगर, जनपद, राज्य, वैभव, दास-दासी आदि का भी विवेचन है। इसमें कुछ जीवन घटनाओं और कथाओं का भी उल्लेख है, इसलिए यह विविध विषयों का शब्दागार भी है।
६. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र प्रस्तुत आगम दो श्रुत स्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुत स्कन्ध में १९ अध्ययन हैं। इन अध्ययनों में विविध कथाएँ, उप कथाएँ, दृष्टान्त, उप दृष्टान्त एवं उदाहरण हैं। जो ज्ञातृ पुत्र महावीर के धर्म प्रधान प्रसंगों को प्रस्तुत करते हैं। ज्ञाता का अर्थ है उदाहरण रूप और धर्मकथा का अर्थ है धर्म प्रधान कथानक । अतः ज्ञान धर्म कथा उदाहरणों के माध्यम से धर्म साधना की प्रक्रिया को समझाने वाला महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ है। इसमें विविध दृष्टान्तों एवं रूपकों के माध्यम से विनय की शिक्षा दी गई है। पञ्च महाव्रतों की महिमा का गुणगान किया गया है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र श्रेष्ठता का परिचय दिया गया है। महापुरुषों के चरित्र-प्रधान कथानकों के माध्यम से साधना पथ की प्रेरणा दी गई है। प्रथम श्रुत स्कन्ध साधु एवं साध्वियों के लिए साधना के मार्ग को प्रस्तुत करने वाला है।
द्वितीय श्रुत स्कन्ध में एक अध्ययन है जो दस भागों में विभक्त है. जिसे वर्ग की संज्ञा दी गई है। यह भी संयम साधना की श्रेष्ठता की विवेचना वाला
आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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