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________________ छेद सूत्र - १. निशीथ, २. महानिशीथ, ३. बृहत्कल्प, ४. व्यवहार, ५. दशाश्रुतस्कन्ध और ६. पञ्चकल्प । दस प्रकीर्ण – १. आतुरप्रयाख्यान, २. भक्तपरिज्ञा, ३. तन्दुलवैचारिक, ४. चन्द्र वेध्यक, ५. देवेन्द्रस्तव, ६. गणिविद्या, ७. महाप्रत्याख्यान, ८. चतुःशरण, ९. वीरस्तव और १०. संस्तारक | आगम साहित्य की संक्षिप्त रूपरेखा अङ्ग साहित्य १. आचारांग — आयारो, आचारांग एवं आयारांग के नाम से प्रसिद्ध यह आगम अङ्ग ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण माना गया है । वृत्तिकार ने इसे अङ्गों का सार कहा है । १३ आचार-विचार एवं श्रमण- श्रमणियों के स्थान आदि का विवेचन करने वाला आचारांग सूत्र दो श्रुत स्कन्धों में विभक्त है । इसके प्रथम श्रुत में नौ अध्ययन हैं, जो बंभचेर नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें ४४ उद्देशक हैं भाषा, विषय, वर्णन आदि की दृष्टि से प्रथम श्रुत स्कन्ध अधिक मौलिक और प्राचीन माना जाता है । द्वितीय श्रुत स्कन्ध में १६ अध्ययन हैं, इन अध्ययनों में मूलतः श्रमण चर्या के विषयों को प्रतिपादित किया गया २. सूत्रकृतांग — यह सूयगडांग, सूतगंड, सूतकंड या सूयगंड नाम से प्रसिद्ध है।१४ यह द्वितीय आगम अङ्ग ग्रन्थ ज्ञान, विनय, क्रिया आदि दार्शनिक विषयों का और अन्य मत-मतान्तरों की मान्यताओं का विवेचन करता है । श्रमण भगवान् महावीर के समय में प्रचलित ३६३ मतों का उल्लेख इस आगम में किया गया है । १५ स्वसमय और परसमय की सूचना देने के कारण यह सूत्रकृतांग ग्रन्थ के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें श्रमणों की साधना और उनके आचार-विचार का भी विवेचन किया गया है । यह आगम दो श्रुत स्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुत स्कन्ध में १६ अध्ययन हैं, जिनमें स्वसमय और परसमय का विवेचन है। इसमें पञ्च महाभूतवादी मान्यताओं का उल्लेख है । आत्मा की अद्वैत दृष्टि, जीव की शरीरवादी दृष्टि, अक्रियावादी, आत्मषष्ठवादी, पञ्चस्कन्धवादी, क्षणिकवादी, ज्ञानवादी, नियतिवादी, लोकवादी आदि के विचारों का विवेचन एवं तत्सम्बन्धी दोषों का निराकरण तथा स्वपक्ष का विवेचन इस श्रुत स्कन्ध की विशेषता है । द्वितीय श्रुत स्कन्ध भी दार्शनिक दृष्टि को प्रतिपादित करने वाला है । इसमें सात अध्ययन हैं, वे दार्शनिक मतों के साथ सांसारिक विषयों के परित्याग का कारण प्रस्तुत करते हैं । गद्य-पद्य प्रधान यह अङ्ग ग्रन्थ भाषा और विषय की दृष्टि से दार्शनिक जगत में जितना प्रसिद्ध है, उतना ही भाषा वैज्ञानिक जगत में भी प्रसिद्ध है। ३. स्थानांग—इस सूत्र में दस अध्ययन हैं जिन्हें स्थान कहा गया है। इन दस स्थानों में धर्म, अधर्म, आकाश, काल, जीव और पुद्गल - इन छः द्रव्यों का आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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