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आचारानुयोग–'आचारस्यानुयोग: आचारानुयोगः' अर्थात् आचारण का सूत्र के अनुसार योग होना आचारानुयोग है। यह आचारानुयोग द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन, भाव आदि के रूप में भी होता है। आचार के अनुयोग का कथन अर्थ रूप में सर्वज्ञ ने कहा, इसलिए वे राग-द्वेष से रहित जिन हैं, वे तीर्थ हैं। उस तीर्थ मार्ग का अनुसरण करके “आचारसुत्त" का कथन गणधरों ने किया है। यह आचारसुत्त अंगश्रुतस्कन्ध के रूप में विख्यात है। इसको नय और निक्षेप के द्वारा समझा जाता है। इसलिये वृत्तिकार ने आचार की प्रमुखता को सिद्ध करने के लिए नय और निक्षेप की पद्धति को अपनाया है और यह कथन किया है कि आचार का पूर्व में उपदेश निक्षेप है, वही भाव आचार के विषय को लेकर आचार के रहस्य का प्रतिपादन करता है। भावाचार दो प्रकार का है-लौकिक और लोकोत्तर। इसी भाव में ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप आदि के गुणों का समावेश होता है। वृत्तिकार ने इसकी विशेषता को देने के लिए आचार के विविध नाम दिए हैं। .
आयारो आचालो आगालो आगरो य आसासो। आयरिसो, अंगंति य आइण्णाऽजाड आमोक्खा ॥
अर्थात् आयार, आचार, आगाल, आगर, आसास, आयरिस, अंग, आइण्णा, आजाइ और आमोक्ख, इन शब्दों की विस्तार से व्याख्या करके इस बात पर बल दिया है कि सभी आयार तीर्थ के प्रवर्तन में पहले से थे और शेष “अंग आनुपूर्वी से थे,” कहा है
सव्वेसिं आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए। सेसाई अंगाई एकारस आणपव्वीए॥१ __ आयार अर्थात् आचारांग बारह अंगों में प्रथम अंग है। इसमें मोक्ष का उपाय है और यही प्रवचन का सार है। इस सार में छह प्रकार के जीवों के संरक्षण का भाव समाहित है। यही चारित्र का सार भी है। चारित्र के सार के विषय में प्रश्न और उसके उत्तर इस बात को प्रकट करते हैं कि अनुयोग अर्थ सार है, व्याख्यान रूप है और वही ग्रहण करने योग्य है। प्रश्न किया
अंगाणं किं सारो?- अंगों का सार क्या है ? आयारो-आयार-आचार है। आयरस्स किं सारो? आचार का क्या सार है? अणुओगत्यो सारो-अनुयोगार्थ सार है। अणुओगत्थस्स सारो किं? अनुयोग का सार क्या है? अणुओगस्सपरूवणा सारो'२-अनुयोग के अर्थ की प्ररूपणा सार है।
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