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________________ क्षेत्रों का विस्तार से विवेचन वृत्तिकार ने करते हुए यह कथन भी किया है कि साधु समाधि एवं समभाव को दृष्टि में रखकर मल-मूत्र आदि का विसर्जन करें। समितियाँ समभाव की द्योतक हैं। साधु एवं साध्वी गमनागमन, भाषा प्रयोग, वस्तु गवेषणा और मल-मूत्र आदि के विसर्जन करते समय सम्यक् यत्न करता है। इसलिए समिति सम्यक् गमन, सम्यक् चर्या, सम्यक् गवेषणा आदि के रहस्य का उद्घाटन करती है। साधु एवं साध्वी इन्हीं समभाव की वृत्तियों से युक्त होकर गमन करते हैं। अतः इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुप्ति __ मन, वचन और काया की प्रवृत्ति, को रोकना गुप्ति है। गुप्ति का शाब्दिक अर्थ रक्षा है। आचारांग सूत्र में मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर षट्काय जीव की रक्षा का संकल्प किया गया है। यह संकल्प संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ के रूप में होता है। इसलिए संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ की वृत्तियों का मन, वचन और काय से रोकना गुप्ति है। सम्यक् प्रवृत्ति का लक्ष्य रखकर जो प्रयत्न जीव रक्षा के निमित से किया जाता है वह प्रयत्न गुप्ति है। अणगार सभी प्रकार की गुप्तियों से गुप्त होते हैं। जिससे चित्त की वृत्तियों का विरोध किया जाता है, वह गुप्ति है। तत्त्वार्थ सूत्रकार ने कहा है कि योगों का भलीभाँति निग्रह करना गुप्ति है।९२ / / गुप्ति भेद : (1) मन गुप्ति, (2) वचन गुप्ति और (3) काय गुप्ति-ये तीन गुप्तियाँ हैं। वृत्तिकार ने मन, वचन और काया के व्यापार रूप क्रियाओं के आधार पर जीवकाय की रक्षा का विवेचन किया है। मन गुप्ति संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ की प्रवृत्ति में प्रवृत्त मन को रोकना मनगुप्ति है। मन गुप्ति के चार भेद किये गये हैं४-१. सत्य मनोगुप्ति, 2. मृषा मनोगुप्ति, 3. सत्य-मृषांमनोगुप्ति और 4. असत्य-मृषा मनोगुप्ति / अतः मन को एकाग्र करना मनोगुप्ति है / नवें श्रुतस्कन्ध में महावीर के मनोयोग का वर्णन है, जिसमें महावीर शिशिर ऋतु में भी मन से आतापना की इच्छा नहीं करते हैं वे मूल गुणों और उत्तर गुणों से युक्त मन का निग्रह करते हैं।९५ वचन गुप्ति .. संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ की क्रिया वचन से भी होती है। इसलिए वचन का निग्रह करना वचन गुप्ति है। वृत्तिकार ने वचन के लिए वाक् शब्द का प्रयोग किया है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 249 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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