________________ आदान निक्षेप जिस समिति में वस्तु का परिग्रह एवं परित्यागं विवेकपूर्वक किया जाता है वह समिति आदान निक्षेपण समिति है। वस्तु मात्र को भलीभाँति देखकर एवं प्रमार्जित करके लेना या रखना आदान निक्षेप समिति है। शरीर, उपाश्रय, उपकरण, स्थंडिल (मल-मूत्र विसर्जन की भूमि), अवष्टंभ और मार्ग ये प्रतिलेखनीय हैं। आगमों में प्रतिलेखनीय विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। वृत्तिकार ने इस समिति को अहिंसा व्रत के रूप में ग्रहण किया है।५ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव आदि जितने भी उपकरण हैं उन्हें विवेकपूर्वक ग्रहण करता है और जीव रहित स्वच्छ भूमि पर उन्हें रखता है। प्रतिलेखना के नाम से यह प्रसिद्ध समिति छह प्रकार की प्रतिलेखनाओं का विवेचन करती है-(१) आरभटा प्रतिलेखना, (2) समर्मदा प्रतिलेखना, (3) मोसली प्रतिलेखना, (4) प्रस्फोटना प्रतिलेखना, (5) विक्षिप्ता प्रतिलेखना,(६) वेदिका प्रतिलेखना। ओघ नियुक्ति भाष्य, उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक, आवश्यक आदि में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। यह समिति प्राणी मात्र की रक्षा का संकल्प . प्रतिपादित करती है। उत्सर्ग उच्चार पासवण (उच्चार प्रस्रवण) द्वितीय श्रतुस्कन्ध का यह नाम शरीर की दो प्रकार की क्रियाओं का प्रतिपादन करता है। वृत्तिकार ने इसकी व्युत्पत्ति करते हुए कहा है कि शरीर से जो प्रबल विवेक के साथ च्युत होता है अपगत होता है। वह उच्चार है। उच्चार को मल या विष्टा कहते हैं। प्रश्रवण का अर्थ है-प्रकर्ष रूप से जो शरीर से बहता है या झरता है वह प्रश्रवण है। उच्चार और प्रश्रवण ये दोनों शारीरिक क्रियाएँ हैं, इनका विसर्जन करना अनिवार्य है। साधक उच्चार प्रश्रवण की शंका से पूर्व ही स्थंडिल प्रदेश पर जाये और वहाँ प्रासुक भूमि को देखकर मल-मूत्र का विसर्जन करे। मल-मूत्र दोनों ही दुर्गन्ध युक्त पदार्थ हैं। साधक को चाहिए की वह उच्चार-प्रश्रवण को विवेकपूर्वक प्रासुक स्थान पर ही निक्षेप करे। इसमें कई प्रकार की सावधानियों का विवेचन भी है, जिसकी विस्तार से चर्चा की गई है। यह चर्चा बाईस सूत्रों में है। निषिद्ध स्थानों पर मल-मूत्र विसर्जन करने से जीव-जन्तुओं की विराधना होती है, वे दब जाते हैं। उनसे जीवों को कष्ट होता है। इसलिए जीवयुक्त पृथ्वी, कीचड़, हरी वनस्पति, खेत, वृक्ष या उद्यान आदि में मल निक्षेप नहीं करना चाहिए। निषिद्ध 248 आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org