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________________ विनयज्ञ, स्व-समय, परसमयज्ञ, भावज्ञ आदि होता है। इसी के साथ वही परिग्रह में ममत्व दृष्टि को नहीं रखने वाला भी होता है, ऐसा विवेचन किया गया है।६५ साधक के वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरण, स्थानक, पादपुंछन, शय्या और आसन भी परिग्रह रूप माने गये हैं। इसलिए साधक देवेन्द्र अवग्रह, राज अवग्रह, ग्रहपति अवग्रह, शय्यान्तर अवग्रह और साधार्मिक अवग्रह को भी आज्ञापूर्वक ग्रहण करता है। आहार आदि की प्राप्ति कैसे की जाए? इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अधिक पदार्थ मिलने पर संग्रह नहीं करें। परिग्रह से अपने आप को दूर रखें।६६ लोक विजय अध्ययन के छठे उद्देशक में कहा है कि ममत्व का जन्म ममता से होता है। ममत्व का नाम परिग्रह है। परिग्रह दो प्रकार का है-(१) द्रव्य परिग्रह और (2) भाव परिग्रह / इन दोनों परिग्रहों की वृत्तिकार ने विस्तार से चर्चा की है। ममत्व बुद्धि के त्याग से भाव परिग्रह होता है और ममता के त्याग से द्रव्य परिग्रह होता है जो ममत्व बुद्धि का त्याग करता है वही ममत्व को छोड़ सकता है और जिसे ममत्व नहीं है वह मोक्ष पथ को जानने वाला है, वही मेधावी है मुनि है।६७ __ ममता और ममत्व बुद्धि जीव को आत्मस्वरूप का भान नहीं होने देता है पदार्थों की आसक्ति से आत्म स्वभाव की प्रतीति नहीं होती है इसलिये चाहे परिग्रह थोड़ा/अल्प हो, सूक्ष्म/स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को महाव्रती न ग्रहण करता है न दूसरों से ग्रहण करवाता है और न ग्रहण करते हुए का अनुमोदन ही करता है। आत्मा से परिवाहित परिग्रह का पूर्ण रूप से परित्याग करता है।६८ परिग्रह विरमण व्रत की पाँच भावनाएँ इस प्रकार दी गई हैं-(१) श्रोत्र इन्द्रिय के राग से उपरति, (2) चक्षु इन्द्रिय के राग से उपरति (3) घ्राण इन्द्रिय के राग से उपरति (4) रस इन्द्रिय के राग से उपरति और (5) स्पर्श इन्द्रिय के राग से उपरति / इन्द्रिय सम्बन्धी मनोज्ञ और अमनोज्ञ दोनों प्रकार के विषयों का परित्याग परिग्रह विरमण व्रत की विशेषता है। समिति जो प्राणी मात्र की सत्ता है, वह समिति है यह समभावों से उत्पन्न होती है, इसमें शुभ और अशुभ कर्म का करण भी वहीं होता है। अर्थात् सम्यक् प्रयत्नपूर्वक जो क्रिया की जाती है वह समिति है। समिति को सावधानी सम्यक् प्रवृत्ति और समभाव दृष्टि भी कह सकते हैं।६९ लोक-विजय अध्ययन में समभाव की प्रवृत्तियों को दर्शाते हुए लिखा है कि सभी प्राणी जीना चाहते हैं, सभी के लिए अपना जीवन प्रिय है। समिति के पाँच भेद हैं—(१) ईर्या (2) भाषा (3) एषणा (4) आदान-निक्षेपण और (5) उत्सर्ग। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में इन समितियों का विस्तार से विवेचन किया गया है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 245 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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