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________________ पच महाव्रत१. अहिंसा महाव्रत आचारांग का प्रथम अध्ययन प्राणियों की रक्षा से सम्बन्धित है, जिसमें अहिंसा का पर्याप्त विवेचन किया गया है। षट्काय-जीव की रक्षा इसका सर्वोपरि उद्देश्य कहा जा सकता है। वृत्तिकार ने संयम में स्थित श्रमण के लिए जिस जीव रक्षा का विवेचन किया है उसमें इस बात का संकेत किया गया है कि श्रमण सभी दिशाओं, विदिशाओं एवं योनियों से जीवों की रक्षा करते हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस जीवों के समारम्भ से रहित अणगार सदैव विचरण करते हैं / 35 / / शीलांक आचार्य ने इस पर पर्याप्त प्रकाश डालते हुए कहा है कि श्रमण अहिंसा का कृत, कारित और अनुमोदना से रहित सभी प्राणियों, सभी जीवों, सभी भूतों और सभी सत्वों की रक्षा करते हैं।३६ श्रमणों के आहार, उपाधि, पूजा और रिद्धि आदि भी ज्ञान, चरण की क्रिया पर आधारित होते हैं। वृत्तिकार ने नय और निक्षेप की दृष्टि से अहिंसा के गुणों पर प्रकाश डाला है।३८ (1) शरीरबल (2) ज्ञातिबल (3) मित्रबल (4) प्रेत्यबल (5) देवबल (6) राजबल (7) चोरबल (8) अतिथिबल (9) कृपणबल और (10) श्रमणबल, इन समारम्भों से रहित श्रमण होता है।३९ सत्य-महाव्रत भाषा रूप में परणित नाना प्रकार के वचनों के दोषों का यावत् जीवन परित्याग करना श्रमणों का सत्य महाव्रत है। सत्य महाव्रती श्रमण हित और अहित का विचार करके ज्ञान, दर्शन और चारित्र का आचरण करता है। वह हर्ष, क्रोध का प्रतिलेख करके सत्य की रक्षा करता है। "पुरिसा सच्चमेव मेहावी मरंतरइ४२ अर्थात् पुरुष सत्य से मेधावी होता है। तीसरे अध्ययन के तृतीय उद्देशक के परम सत्य को जानने की शिक्षा दी है। इसमें कहा है कि सत्य को अच्छी तरह से जानो। सत्य की आज्ञा में उपस्थित रहने से मेधावी मार/मृत्यु/संसार से पार हो जाता है। सत्य धर्म ग्रहण करने से साधक श्रमण आत्मा का साक्षात्कार कर लेता है। वह राग-द्वेष से रहित ज्ञानादि से युक्त कभी भी व्याकुल नहीं होता है। वह आत्मदृष्टा बना रहता है। लोकालोक प्रपञ्चों से रहित होता हुआ सत्य की आराधना करता है। ज्ञान आदि से युक्त श्रुत चारित्र के गुणों को लेकर श्रमण सत्य की ओर लगा रहता है। वृत्तिकार ने सत्य के तीन अर्थ किये हैंआचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 241 - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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