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________________ परन्तु आचारांग-वृत्ति में ज्ञानाचार के आठ प्रकार भी गिनाये गये हैं-१ (1) काल, (2) विनय, (3) बहुमान, (4) उपधान, (6) अनिह्नव, (6) व्यञ्जन (7) अर्थ, (8) . व्यञ्जन अर्थ (उभयात्मक)। ज्ञान सकल पदार्थ या आर्विभाविक है।१२ दर्शनाचार सम्यक्त्व विषयक आचरण को प्रस्तुत करने वाला दर्शनाचार है। सम्यक्त्व अध्ययन में इसकी विस्तृत विवेचना की गई है। शीलंक आचार्य ने तत्त्व के श्रद्धान को सम्यक्त्व कहा है / 13 इसके दो भेद किये हैं-(१) द्रव्य सम्यक्त्व और (2) भाव सम्यक्त्व / निक्षेप की दृष्टि से सम्यक्त्व के चार भेद प्रतिपादित किये हैं।१५ सम्यक्त्व को सम्यक् दर्शन कहते हैं। दर्शनाचार के आठ भेद किये गये हैं-(१) निशंकित 6 (2) निष्कांक्षित (3) निर्विचिकित्सा (4) अमूढ़-दृष्टि (5) उपवृहण (6) स्थितिकरण (7) वात्सल्य और (8) प्रभावना / चारित्राचार आचारांग का लोकसार नामक पञ्चम अध्ययन चारित्र की विशेषताओं को प्रतिपादित करने वाला है। इस अध्ययन में चारित्र प्रतिपादन, चारित्र विकास, चारित्र के आचरण में अवरोध तथा चारित्र के प्रमुख अङ्गों का वर्णन है। वृत्तिकार ने चारित्र की गम्भीरता, पवित्रता, उदारता और इसकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि चरित्र के फल से मुक्ति की प्राप्ति होती है। सम्यकत्व और ज्ञान का फल चारित्र है। इसीलिए चारित्र मोक्ष का प्रधान अङ्ग है। लोक का सार मोक्ष है। संसारी प्राणी मोह के कारण से इसके महत्त्व को नहीं समझ पाते हैं। इसलिए इसके सार को नहीं पहचानते हैं।१८ चरण सम्पन्न चारित्र सम्पन्नता तीन गुप्ति और पञ्च समिति के संयोग से आती है / 19 तपाचार तप के आचरण को प्रस्तुत करने वाला तपाचार शारीरिक बाह्य-शुद्धि के साथ आभ्यन्तर शुद्धि को महत्त्व देता है। तप एक ऐसा कर्म है जिसके कारण बँधे हुए कर्मों की निर्जरा की जाती है।° निर्जरा का हेतु होने के कारण तप बारह प्रकार का कहा गया है। लोक विजय अध्ययन में इसका विस्तार से विवेचन किया गया है। बाह्य तप (1) अनशन (2) ऊणोदरि (3) वृत्ति;संक्षेपण (4) रस-त्याग (5) काय-क्लेश और संलिनता / 21 आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 238 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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