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________________ स्कन्धक छन्द उदाहरण-अवरेण पुव्व किह से अतीतं किह आगमिस्सं न सरंति एगे। भासन्ति एगे इहमाणवाओ जह स अईअं तह आगमिस्सं / 141 तथैव किञ्चिद्गदतः स एव में, पुनातु धीमान् विनयार्पिता गिरः॥१४२ अनुष्टुप् छन्द वर्ण वृत्तों में अनुष्टुप आठ अक्षरों के चरण की एक जाति है। इसके चरणों में गुरू लघु के भेद से अनेक छन्द बनते हैं। अनुष्टुप का जो लक्षण सामान्य रूप से प्रचलित है वह श्रुतबोध के अनुसार है। उदाहरण-बालुगा कवलो चेव, निरासाए हु संजमो॥ जवा लोहमया चेव चावेयव्वा सुदुक्करं // 138 गावे वा अदुवा रण्णे, थंडिलं पडिलेहिया। अप्पपाणं तु विन्नाय तणाई स थरे मुणी // इन्द्रवज्रा ऽऽ। 55 / / 5 / 55 = 11 दिज्जे तआरा जुअला परसुं, अणंतरे दो गुरु जुग्ग सेसं / णपेफणिंदाधुअइदवज्जा, मत्ता दहा, अट्ठ समा सुसज्जा। अर्थात् प्रत्येक चरण में दो तगण दिये जायें, अंत में जगण तथा दो गुरु हों, फणीन्द्र कहते हैं कि यह इंद्रवज्रा छंद है तथा इसमें दस और आठ भात्राएँ प्रत्येक चरण में होती हैं। उदाहरण भिक्खं पवितुण मएऽज्ज दिटुं पमयामुहं कमलविसालनेत्तं / वक्खित्तचित्तेण न सुट्ठ नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति / 139 उपेन्द्रवत्रा / / 5 / / / 5 5 = 11 वर्ण उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ उदाहरण-फलोंदएणं मि गिहं पविट्ठो तत्थासणत्था पमया मि दिट्ठा __ वक्खित्त चित्तेण न सुट्ठ नायं, सकुंडलं वा वयणं न वत्ति / 140 उपजाति समान जाति के दो छन्दों के चरणों का किसी छन्द में संकर (मेल) होने पर वह उपजाति कहा जाता है। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 229 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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