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________________ आचारांग वृत्तिकार ने द्वादशाक्षर उपजाति (वंशस्थ-इन्द्रवंशा) छन्द का उदाहरण इस प्रकार दिया है आचारशास्त्रं सुविनिश्चितं यथा, जगाद वीरो जगते हिताय यः। . . . तथैव किञ्चिद् गदतः स ए व मे, पुनातु धीमान् विनयार्पिता गिरः॥ आचारांग सूत्र में गाथा, अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा. छन्दों को छोडकर अन्य जितने भी छन्द हैं, वे प्रथम पंक्ति की अपेक्षा द्वितीय पंक्ति में भिन्नता लिये हुए हैं। इससे यह अर्थ नहीं निकलता है कि वे छन्द नहीं हैं। छन्द अवश्य हैं, पर किस तरह के हैं, इस पर स्वतंत्र रूप से अध्ययन अपेक्षित है। __ आचारांग सूत्र एवं आचारांग वृत्ति में गद्य की प्रधानता है। पद्य भी गेय प्रधान है, जिन्हें गाया जा सकता है। गद्य में भी गेयात्मकता है। जैसे-' “संति पाणा पुढोसिया लज्जमाणा पुढो पास” वृत्तिकार ने संस्कृत वृत्ति में प्राय: अनुष्टुप छन्दों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं पर इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा छन्द भी हैं। जैसे एक एव हि भूतात्मा, भूते मूले व्यवस्थितः। एकधा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् // 143 आचारांग वृत्ति के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में बहुत कम छन्द हैं। जहाँ कहीं भी छन्दों का प्रयोग किया गया है, उनमें प्रायः प्राकृत में गाथा छन्द और संस्कृत में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग हुआ है। शीलांक आचार्य ने अपनी वृत्ति में अन्यत्र प्रचलित गाथाओं एवं संस्कृत श्लोकों को भी प्रयुक्त करके विषय की पुष्टि की है। .. अज्ञो जन्तुरनीशः स्यादात्मनः सुख दुःखयोः। ईश्वरप्रेरितो गच्छेच्छुभ्रं वा स्वर्गमेव वा // 144 आचारांग वृत्ति के भाषात्मक अध्ययन में सम्पूर्ण विषय को नहीं समेटा गया है। इसके वर्ण विषय गद्य-पद्य शैली संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, कृदन्त, तद्धित छन्द आदि की मात्र सूचना ही दी गई है। आचारांग वृत्तिकार की वृत्ति अर्थ के विस्तार से युक्त है। गद्य-पद्य मिश्रित है। गद्य के प्रयोगों में सुकुमारता है जो काव्य सौन्दर्य को लिये हुए है। आचारांग वृत्ति दुरूह होते हुए भी अपने भाषात्मक प्रवाह के कारण विषय को अधिक स्पष्ट करने वाली है। संक्षिप्त में यदि कहा जाए तो यही कहा जा सकता है कि आचारांग वृत्ति भावों की अनुकूलता के साथ विशेष शैली को लिये हुए है। शीलांक आचार्य ने दार्शनिक दृष्टान्तिक विवेचनात्मक एवं अर्थ गाम्भीर्यपूर्ण शैली का प्रयोग करके भाषा को सरल बनाया है। वृत्ति के सभी विवेचन भाषा सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं। छन्द, अलंकार आदि भी इसकी शोभा को बढ़ाते हैं। इस तरह यह वृत्ति भाषा अध्ययन के अनुसंधान को लिये हुए अनुसंधान की अपेक्षा करती है। 000 230 आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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