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________________ करुण रस मंसाणि छिन्न पुव्वाणि उद्वमियाएणया कायं। परीसहाई लुचिं अदुवा पंसुणा उवकरिंसु // 134 बीभत्स रस महंवा मज्जवामंसं वा सक्कलिं वा फाणियं वा पूर्व वा सिहिरिणिं वा / 135 इस प्रकार आचारांग वृत्ति में विविध रसों के परिपाक को भी प्रस्तुत किया गया है। छन्द प्राकृत में काव्यकारों ने प्राकृत के स्वतंत्र छन्दों के अतिरिक्त संस्कृत के मालिनी, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, बसन्ततिलका आदि छन्दों का भी प्रयोग किया है। आचारांग सूत्र में आचारांग के वृत्तिकार ने वृत्ति लिखते समय गाथा छन्द के अतिरिक्त अन्य छन्दों का भी प्रयोग किया है। यहाँ कुछ छन्दों के उदाहरण दिये जा रहे हैं। यथागाथा छन्द भेद गाथा छन्द के प्राकृत कवियों ने 27 भेद किये हैं।९३६ 1. लक्ष्मी, 2. ऋद्धि, 3. बुद्धि, 4. लज्जा, 5. विद्या, 6. क्षमा, 7. देवी, 8. गौरी, 9. धात्री, 10. चूर्णा, 11. छाया, 12. कांति, 13. महामाया, 14. कीर्ति, 15. सिद्धि, 16. मानिनी, 17. रामा, 18. मोहिनी, 19. विश्वा, 20. वासिता, 21. शोभा, 22. हरिणी, 23. चक्री, 24. सारसी, 25. कुररी, 26. सिंही और 27. हंसिका। गाथा छन्द पढमं बारहमत्ता बीए अट्ठारहेहि संजुत्ता। जह पढमं तह तीऊ दह पञ्च विहूसिआ गाहा // अर्थात्-गाथा के प्रथम चरण में 12 मात्राएँ होती हैं, दूसरे में यह 18 मात्राओं से युक्त होती हैं। तीसरे चरण में प्रथम चरण की ही तरह होती हैं। बाकी चरण में गाथा 15 मात्रा से विभूषित होती हैं। उदाहरण-सोऊं सोवणकाले मज्जण काले य मज्जिङ लोलो। जेमेउं च वराओ जेमण काले न चाइए // 137 गीति छन्द अग्गबीया मूल बीया खंध बीया चेव पोरबीया। उपगीति बीय रुहा समुच्छिम समासओ वणसई जीवाय / / 228 आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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