________________ अलंकारों से युक्त है। शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति आदि को लिया जाता है। अर्थालंकार में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, संदेह, भ्रांतिमान, दृष्टान्त आदि को लिया जाता है। आचार्य शीलांक की आचारांग वृत्ति में अलंकारों का प्रयोग हुआ है। यहाँ कुछ अलंकारों के प्रयोग उदाहरण सहित दिये जा रहे हैंअनुप्रास ___ “अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्सय यत्"१२७ स्वरों की विषमता रहने पर भी शब्दों की समानता को अनुप्रास कहा जाता है। जैसे-लोगागास पएसे इक्किक्कं निक्खिये पुढविजीवं / 128 आउकायं च तेउकायं च वाउकायं च 29 उपमा जहाँ सादृश्यता दिखाई जाती है वहाँ उपमा अलंकार होता है। जैसेबालुगा कवलो चेव, निरासाए हुं संजमो। जवालोह मया चेव, चावेयत्वा सुदुक्करं // 130 अंधस्स जह पलिता दीवसत सहस्स कोड़ीवि / 131 दृष्टान्त "दृष्टान्तस्तु सधर्मस्य वस्तुनः प्रतिबिम्बनम्”। अर्थात्-समान धर्म वाले वाक्यार्थ का प्रतिबिम्बन-विशेष अवधान के द्वारा ___ सादृश्य की प्रतीति करना दृष्टान्त कहा जाता है। जैसेअट्ठी जहा सरीरंमि अणुगयं चेयणं खरं दिहूँ / एवं जीवाणु गयं पुढविसरीइं खरं होई // 132 आचारांग वृत्ति में प्राकृत और संस्कृत इन दो भाषाओं का प्रयोग हुआ है। शीलांक आचार्य ने प्राकृत और संस्कृत दोनों ही भाषाओं के माध्यम से अलंकारिक शैली को प्रस्तुत किया है। दोनों में ही दृष्टान्त, उपमा, रूपक आदि अलंकार को दिया गया है। यहाँ अलंकारों की मात्र सूचना दी जा रही है। संस्कृत के प्रयोगों को नहीं दिया जा रहा है। अलंकार के अतिरिक्त इसमें सभी तरह के रसों का भी प्रयोग हआ है। शान्त रस प्रधान यह रचना वीभत्स, वात्सल्य, करुण, रौद्र, वीर, हास्य आदि रसों के उदाहरणों से भी परिपूर्ण है। कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैशान्त रस - अरिहंतादिसु भत्ते सुत्तरूई पुयणुमाण गुपेही। - बन्धई उच्चागोयं विवरीए बंधई इयर // 133 आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 227 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org