________________ . गुण संधि अ या आ वर्ण से आगे इ और उ हो तो गुण आदेश हो जाता है। जैसे-मोक्खोवाओ (मोक्ख + उवाओ) पृ. 4, चओवचइयं (चअ + उपचइय). पृ. 43, महोअही (महाओअही) पृ. 91, सुद्धोदए पृ. 27 / विकृत वृद्धि संधि ए और ओ से पहले अ और आ हो तो उनका लोप हो जाता है / जैसे-अप्पेगे (अप्प + एगे) पृ. 25, जस्सेते पृ. 26 / / ह्रस्व दीर्घ विधान संधि मईमया पृ. 206, अंडापोअअ पृ. 45, अणुपुव्वेण पृ. 182 / प्रकृति भाव संधि मइउग्गह पृ. 268, नोइदिय पृ. 268, तप-आचारो पृ. 3 / व्यंजन संधि प्राकृत में व्यंजन परिवर्तन होते हैं, इसलिए व्यंजन संधि नहीं है। अव्यय संधि यह सन्धि दो अव्यय पदों में होती है। जैसे-जहउम्हा पृ. 33, णेव पृ. 34, सव्वओवि पृ. 35, वावि पृ. 35, केवच्चिरं पृ. 35, अण्णेवा पृ. 36, णइए इचत्थं पृ. 36, दंडेत्ति पृ. 36, जमिणं पृ. 431, जेहत्थ पृ. 77 / इन संधियों के अतिरिक्त प्राकृत में स्वर लोप संधि की बहुलता है। आचार्य हेमचन्द ने प्राकृत व्याकरण में लिखा है कि स्वर के आगे स्वर हो तो शब्द के स्वर का लोप हो जाता है / 26 जैसे-एगिंदिय पृ. 45 (एग + इंदिय), यहाँ एग शब्द में स्थित अ स्वर का लोप हो गया। विगलिदिएसु पृ. 45, पिंडेसणा पृ. 238 / अणासवा पृ. 121 (अण + आसवा) यहाँ अ के बाद आ होने पर प्रथम शब्द के स्वर का लोप हो गया। आणाकंखी पृ. 127, अहावरा पृ. 238, मूलुत्तर (मूल + उत्तर) पृ. 246, यहाँ अ के बाद उ होने पर शब्द के अ का लोप हो गया। यश्रुति-सीयधरो पृ. 100 (सीओ), सीयल दव्व पृ. 100, भूअ पृ. 100 / अलंकार योजना काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्व अलंकार कहलाते हैं। आचारांग सूत्र गद्य की प्रधानता वाला प्राकृत का सिद्धान्त ग्रन्थ है। आचार्य शीलांक ने इसकी वृत्ति में काव्य की कला को भी प्रस्तुत किया है। काव्य की कला का अलंकरण अलंकार कहलाता है। शब्द और अर्थ से युक्त काव्य शब्दालंकार और अर्थालंकार इन दो 226 आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org