________________ तुं--जीवितुं कुव्वेतुं विधि कृदन्त अव्व-तरिअव्वों (91), होअव्वं (96) यव्व-चवियग्वा (91) तण्व-हंतण्वा (119), परिधितण्वा (119) अवयव तो, को, चिय, ण, य, पि, जिइ, तोह, ता, उ, साहे, सया, जह, णवरं, अन्नया, पुणो, विव, पृ. (51), सव्वहा (51) जाव, ताव, णं, वा, नो, (63) जेणे (64), अ (64), एगया (72), सह (73), अदुवा (76), चेव, तत्तिया, जत्तिया, विणा (8), अन्नहा (90), जहा, तहा (91), तम्हा (94), नेव (94), सिया (94), ह, प्र (5), जम्हा (95), सव्वओ (97), इइ (इति) (97), सव्वसो (99), हि (112), पच्छा (116), जाइओ (155), णं (वाक्यालंकारे) (157) / तद्धित ल्ल-माइल्लो/माइल्लो (64) इल्ल–थंडिल्ल (273) त्त-अन्धतं बहिरतं, मूयत्तं, काणत्तं, कुंटत्तं, खुज्जतं, बडभत्तं, सामत्तं, सवलत्तं (79), ‘य-निद्दया, दयालुया (102), त्तया (102) तण-णिवत्तण, किवत्तण संधि “सन्धान संधि” अर्थात् मेल का नाम सन्धि है। प्राकृत में स्वर संधि की बहुलता है। कुछ विकल्प संधि व्यवस्था भी है। संधि के तीन भेद हैं-(१) स्वर संधि (2) व्यंजन संधि और (3) अव्यव संधि / स्वर संधि- ... . इसके पाँच भेद हैं-(१) दीर्घ संधि, (2) गुण संधि, (3) विकृत वृद्धि संधि, (4) ह्रस्व दीर्घ संधि और (5) प्रकृति भाव संधि / दीर्घ संधि - ह्रस्व या दीर्घ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ समान स्वर होने पर दीर्घ संधि हो जाती है। जैसे-वीरियायारो (वीरिय + आयार) पृ.१४, बंधाणुलोपया (बंध + अणुलोमया) पृ. 4, सचिताचित (सचित + अचित) पृ. 268, मुणीस, भाणूदय / आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन 225 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org