________________ समीकरण१. पुरोगामी समीकरण निज्जुत्ति (101), तिव्व (101), निव्वाण (101) 2. पश्चगामी समीकरण कम्म (97), सव्व (5), सद्द (104) अनुनासिक प्रयोग दंसणं (13) घोषीकरण लोगागास (21), विवेग (174) / महाप्राणीकरण अल्प प्राण युक्त ध्वनियाँ कहीं-कहीं पर महाप्राण का रूप धारण कर लेती हैं। जैसे–फासुग–फासुय (270) / उष्मीकरण ख, घ, थ, ध और म के स्थान में “ह” हो जाता है। जैसे-मुह (219) ओह (ओग) (81), वाही (69), मेहावी (44), लोह (लोभ) (8) / विषमीकरण 1. पुरोगामी विषमीकरण-वणस्सइ (44), 2. पश्चगामी विषमीकरण-बंमचेर / संज्ञा एवं सर्वनाम शब्द अर्धमागधी प्राकृत में पद रचना की दृष्टि से पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग के रूप हैं। अकारान्त इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, अकारान्त के रूप में संज्ञा शब्द प्रचलित है। यहाँ सभी तरह के रूपों को नहीं दिया जा रहा है। अपितु परिवर्तन युक्त रूपों को ही प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे१. अकारान्त पुल्लिग शब्दों के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्रायः “ए” प्रत्यय होता है। जैसे-अणगारे (28), खेयण्णे (35), मो, मारे (48), चेलकण्णे (50) / 2. वृत्तिकार की वृत्ति में प्राय: “ओ” प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। जैसे—सारो (5), आयारो (5), सो (5), जीवो (7), भावों (7), गुणो (100), सीयधरो (100) / 3. तृतीय विभक्ति के एकवचन में कहीं-कहीं पर “सा” प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। जैसे—मणसा, वायसा, कायसा। 222 आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org