________________ खेयण्ण ध-ज्ज त्म-प्प प्त-खिप्त क्षिप्त (253) ज्ञ-न (001) कालन्न (कालज्ञ) विणयन्न (विनयज्ञ) (88) (119) सज्ज (276) सद्द (276) सत्ति (276) अप्प (5) (26) ने–ण्ण वण्ण (5), सव्व (5) नोट:-रेफ युक्त संयुक्त व्यंजन होने पर र का लोप हो जाता है और अवशिष्ट का द्वित्व हो जाता है। जैसे-तित्थ (तीर्थ) (7), सव्व (10), कम्म (कर्म) (10) / व्यंजन आगम 1. आदि व्यंजन आगम-रिसह, रिसि 2. मध्य व्यंजन आगम-पुढविक्काए (22), वाउद्देसे (50), अस्संजमो (100) 3. अन्त व्यंजन आगम-सत्तग सत्तग (45), संधियपुव्वं (51) विपर्यय स्वर, व्यंजन और अक्षर जब एक स्थान से दूसरे स्थान को प्राप्त होते हैं, तो इनके परस्पर परिवर्तन को विपर्यय कहते हैं। जैसे-तेइच्छ (कित्सक) (93), वराणसी (बानारसी)। दीर्घ का हस्व समासान्त पद में दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है। कुछ ऐसे भी दीर्घ शब्द होते हैं जो संयुक्त होने पर भी ह्रस्व को प्राप्त हो जाते हैं। वीरिय- विरिओ-(४) यह स्वतंत्र शब्द है, इसका प्रथम दीर्घ शब्द ह्रस्व हो गया। जैसे-जोणिलक्खाओ (16), पुढविजीवा–(१९), अणुपुत्वेण (182, 173, 175) / ह्रस्व का दीर्घ समासान्त पद में ह्रस्व स्वर का दीर्घ हो जाता है। अंडापोअअ (45), मईमया (206) / आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन 221 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org