________________ PM इका उ इसी तरह द्वितीय श्रुतस्कन्धों में दृष्टान्तों की भरमार है। कुष्ठरोग,२१ आहार स्थान,२२ भिक्षु प्रतिज्ञा,२३ सिंह, व्याघ्र आदि का भी वर्णन किया है। ध्वनि परिवर्तन___ध्वनि परिवर्तन दो प्रकार से होता है-(१) स्वाभाविक और (2) परिस्थितिजन्य। ध्वनि का यह परिवर्तन आदि, मध्य, अन्त्य बलाघात, स्वर भक्ति आदि के रूप में होता है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से ध्वनि परिवर्तन के तीन विशेष कारण हैं-(१) स्वर परिवर्तन (2) सरल व्यंजन परिवर्तन और (3) संयुक्त व्यंजन परिवर्तन / स्वर परिवर्तन यहाँ कुछ ही परिवर्तन दिए जा रहे हैं, जैसेअ-आ समिहि–सामिद्धि, पगड-पागड अ-इ अङ्गाई-इंगाल (215), सिज्जा (शय्या) (239) अ-उ . गवय-गउओ अ--ए सेज्ज (शय्या) (4) असुपाल-इसुपालं (264), उच्छु (इक्षु), दुविह, दुवालस (4), दुवे (202) आ-ओ आबोगउ (अव्याकृत) (213) निक्खेवो-निक्खिवे (3), खित्त (6, 239) इत्थ-एत्थ (75) इ-ए पडिसेहिओ-(प्रतिषिद्ध) (86) . ओ-उ विमुक्खो (विमोक्ष), मुक्ख (मोक्ष) (174) ऋ-अ तणफासा (191) बंध्र (ब्रह्म) (3) धिरं (धृति) (108) रड्डी (119) इसि (279) भिगघड उज्जु–(ऋजु) (103) ऋ-ओ मृषा–मोसा-(२५६, 257) ऐ-ए वेयावच्चं-(४) ऐ-अइ बटूर (वैर) औ-ओ ओसहि—(२१५) औ-अउ कउहल अव–ओ समोयारे-(३) ओगाहंते (22), ओगाढ (अवगाड) (22) 218 ___ आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन ऋ-३ ऋ-उ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org