________________ संस्कृत सूक्तियाँ१. कालः पचति भूतानि, कालः संहरते प्रज्ञाः / कालः सुप्तेषु जागर्ति, कालो हि दुरतिक्रमः॥८ 2. सुखकामो बहुदुःखं संसार मनादिकं भ्रमति / 3. वीरभोग्या वसुन्धरे / 90 4. यागो नियागो मोक्षः मार्गः।९१ 5. जिनप्रवचने शमनं शान्तिः।१२ 6. विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतज्ञानम् / ज्ञानस्यफलं विरतिर्विरतिफलं चाश्रवनिरोधः / 93. 7. कामेषु गिद्धा निचियं करन्ति / 94 8. अपकारिणि कोपश्चेत्कोपे कोपः कथं न ते?९५ .. 9. न जायते न म्रियते, नैव छिन्दति शस्त्राणि नैवं दहति षावकः।९६ / 10. क्रियैव फलदा पुसां न ज्ञानं फलदं मतम् / 27 वृत्तिकार ने संस्कृत में जो वृत्ति लिखी है, उसमें कई तरह की संस्कृत सूक्तियाँ हैं। परन्तु यहाँ केवल कुछ ही सूक्तियों द्वारा इसकी शैली का विवेचन किया है। अनेकार्थवाची शब्द 1. निजा आत्मीया बान्धवाः सुहृदो८ 2. वयः कुमार: यौवनं / 29 / 3. धी, बुद्धि / 220 4. मुनि, मुमुक्षु०१, मुनि, यति, मुक्त 02 5. प्राणी, जीव, सत्तवं, भूत 03 6. पाणा भूया जीवा सत्ता 04 इत्यादि कई अनेकार्थवाची शब्द भण्डार इसमें हैं। दृष्टान्त (कथात्मक) - वृत्तिकार ने आचारांग सूत्र की वृत्ति में अनेक दृष्टान्त दिये हैं। इन दृष्टान्तों के आधार पर विषय को सरल बनाया गया है। यहाँ केवल उनके नाममात्र दिये जा रहे हैं। 1. वसन्तपुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा था। धारिषी उनकी पत्नी थी। धर्मरुचि नामक पुत्र था। धर्मरुचि ने अनाकुट्टि के लिए सबकुछ त्याग कर दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया / . मुमुक्षु आत्माओं के लिए परिज्ञा करना सर्वप्रथम आवश्यक है, इसके बिना आगे प्रगति नहीं हो सकती है। जैसे-वर्णमाला में “अ” और अङ्कगणित में "एक" को जाने बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है / 106 216 आचाराङ्ग-शीलावृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org