________________ और सम्यक चारित्र की संगति होती है वह मोक्षमार्ग है। अन्यत्र भी इसको इस रूप में प्रस्तुत किया है। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र युक्त मोक्षमार्ग है। इसी तरह महावीथी शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है कि सम्यक् दर्शन आदि रूप मोक्षमार्ग है, यही माहवीथी है।६८ 1. मोक्षमार्ग-अष्ट प्रकार की कर्म संतति रूप मोक्षमार्ग है।६९ 2. मोक्ष संघी-ज्ञान, दर्शन और चारित्र प्रधान मोक्षमार्ग में सम्भावात्मक प्रवृत्ति / 70 3. अचेल-जिन कल्पित भाव से युक्त निर्ग्रन्थ अवस्था। 4. समाधिमरण-परमार्थ हेतु उपक्रम / 72 5. धीर–परिषह और उपसर्ग रहित / 73 सूक्तियाँ आचारांग वृत्ति में सूक्तियों का भंडार है। इसमें प्राकृत और संस्कृत दोनों में ही सूक्तियाँ हैं। कुछेक सूक्तियाँ यहाँ दी जा रही हैं। प्राकृत सूक्ति१. हयं नाणं कियाहीणं हया अन्नाणओ क्रिया। पासंतो पंगुलो दड़ो, धावमाणो य अंधवो // 4 2. गुत्ता गुत्तीहिं सव्वाहिं समिईहिं संजया। जयमाणगा सुविहिया एरिसया हुँति अणगारा / 5 3. पणया वीरा महावीहिं / 76 4. जे गुणे से आवट्टे जे आवट्टे से गुणे / 5. संति पाणज्ञ पुढो सिया।८ 6. कटेण कंटएण व पाए विद्धस्स वेयणट्टस्स / 7. विणया. णाणं णाणाउ दंसणं दंसणाहि चरणं तु / चरणाहिंतो मोक्खों मुक्खे सुक्खं अणावाहं // 8deg 8. खणं जाणाहि पंडिए।' 9. कामा दुरतिकमा।८२ .. 10. आगासे गंगसोउव्व / / 3 / / 11.. बालुगा कवलो चेव, निरासाए हु संजमो। 12. तुममेव तुमं मित्तं किं बहिया मित्तमिच्छसि / 13. जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणई / 6 14. जे आया से विन्नाया जे विन्नाया से आया। आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन 215 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org