________________ প্তি मोक्ष लोक लोक नियुक्ति निश्चयेनार्थप्रतिपादिका युक्ति नियुक्तिः। निष्प्रतिकर्मशरीर मृतार्चा-मृतेव-मृतासंस्काराभावादा / शरीरं येषां ते तथा, निष्पति कर्म शरीरा।८ पाप मोक्ष पातयति पासयतीति वा पापं / तस्मान्मोक्षः पापमोक्षः इति / 49 भिक्षण शीलो भिक्षुः स भिक्षुः कालज्ञः उचितानुचितावसरतः।५० ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः।५१ . लोगो वहबज्झइ जहय तं पजहि यव्वति, विजितभावलोकेन संयमस्थितेन लोको / लोकयतीति लोक;, लोकः प्राणिगणः।५३. . लोगविपस्सी लोकविदर्शी लोकं विषयानुषङ्गावेशात् दुःखातिशयं तथा व्यक्तकामावत् प्रथम सुखं विविधं द्रष्टुं शीलमस्येति लोकविदर्शी / 54 वय वयः कुमारादि अत्येति-अतीव-एति-याति अत्येति / 5 वृक्ष वृक्षयन्त इति वृक्षाः।५६ व्यंजन व्यज्यते आविष्यतेऽर्थोऽनेनेति व्यजंन / 57 . शमित दर्शन शमितम् उपशमं नीतं दर्शनं, दृष्टिनिमस्येति शमित-दर्शनः / 58 शस्त्र शस्यन्ते-हिस्यन्तेऽनेन प्राणिन इति शस्त्रं शस्यतेऽनेनेति शस्त्रं / 59 संप्रेक्ष संप्रेक्षया पर्यालोचनया एवं संप्रेक्ष्य वा भयात् क्रियते / 60 संसार जंमूलांग स संसार / 61 संसार संसारो जत्थेते संसरीति जिआ संसरन्ति स्वभाव: संसारा / 62 समित दर्शन समतामि-गतं दर्शनं-दृष्टि रल्वेति समितदर्शनः / 63 स्वभाव वस्तुनः स्वत एव तथा परिणति भावः स्वभावः / / श्राम्यतीति श्रमणो यतिः।५ इस तरह के अनेक निरूक्ति शब्द इसमें समाहित है। परिभाषात्मक शैली वृत्तिकार शीलंक आचार्य ने मूल सूत्रकार के सूत्रों के शब्दों पर जो नाना प्रकार की परिभाषाएँ दी हैं, वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। सूत्रकार केवल सूत्र के रूप में जिन शब्दों को प्रस्तुत कर सका, उन शब्दों को लेकर वृत्तिकार ने नाना प्रकार के लक्षण भी प्रस्तुत किये हैं, जैसे-मेधावी, इसका अर्थ कुशल एवं ज्ञानवान किया है। और कहा है, “जो मन, वचन, काय से कर्म बन्धन के हेतु को जानता है वह मेधावी है।"६६ मोक्षमार्ग के विषय में उन्होंने कहा है कि जहाँ सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन 214 आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन श्रमण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org