________________ बसन्तपुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा था। धारणी नाम की उसकी पत्नी थी। और धर्मरुचि नामक उसका पुत्र था। इन तीनों के विचारों तथा राजकुमार के जातिस्मरण ज्ञान को सहसम्मति अर्थात् आत्मज्ञान के उदाहरण को प्रस्तुत किया। वृत्तिकार ने आचारांग सूत्र के मूल सूत्र को समझाने के लिए निम्नलिखित तीन साधन उदाहरण सहित प्रस्तुत किये हैं। इसी तरह राजगृह नगरी के राजा जितशत्रु का उदाहरण दिया गया है।९ 1. सहसम्मति या स्वमति, 2. पर-व्याकरण, 3. अन्य अतिशय-ज्ञानियों के वचन / प्रश्नोत्तर शैली आचारांग सूत्र की सूत्रात्मक शैली को पूर्णत: प्रश्नोत्तर रूप में है। कहीं-कहीं पर प्रश्न तो प्रस्तुत किये गये हैं पर उनके उत्तर नहीं दिये गये हैं. जैसे “संति पाण्ग पुढोसिया लज्जमाणा पुढो पास"१२ सूत्रकार ने प्रश्न के उत्तर को अत्यन्त ही सरल रूप में दिया है। प्रश्न के जितने भी उत्तर हैं, वे सभी बोधगम्य हैं, जैसे के गोतावादी? के माणज्ञवादी? कंसि वाएगे गिज्झे ? 13 / अर्थात् कौन गौत्रवादी होगा? कौन मानवादी होगा? और कौन एक गोत्र में आसक्त होगा? इसका उत्तर एक सरल रूप में इस प्रकार दिया है कि जो व्यक्ति इनसे मुक्त होकर समभाव को धारण करता है, वह उच्च गोत्र की प्राप्ति पर हर्षित नहीं होता है। और न नीच गोत्र की प्राप्ति पर दुखित होता है। ऐसे अनेक प्रश्न हैं और उन अनेक प्रश्नों के समाधान भी सरल ढंग से प्रस्तुत किये गये हैं। पढ़ने वाला या सुनने वाला किसी भी तरह का विकल्प कर सकता था, परन्तु उस विकल्प के पूर्व ही सूत्रकार के सूत्र में उसे समाधान मिल जाता है / वृत्तिकार ने सूत्रकार की शैली को नये रूप में प्रस्तुत किया है। जिसे वृत्तिकार की दृष्टि से निक्षेप दृष्टि कह सकते हैं। यथा 1. नीच गोत्र का बन्ध-नीच गोत्र का उदय और नीच गोत्र की सत्ता। 2. नीच गोत्र का बन्ध-नीच गोत्र का उदय और उभय की सत्ता / 3. नीच गोत्र का बन्ध-उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता / 4. उच्च गोत्र का बन्ध-नीच गोत्र का उदय और उभय की सत्ता / 5. उच्च गोत्र का बन्ध-उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता / 6. बन्धाभाव-उच्च गोत्र का उदय और उभय की सत्ता / 7. बन्धाभाव-उच्च गोत्र का उदय और उच्च की सत्ता / 15 आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन 211 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org