________________ अर्थ की विशालता वृत्तिकार सूत्र शैली को प्रकट कर उसके अर्थ को अधिक से अधिक स्पष्ट करते हुए ही आगे बढ़ा है। जैसे-अनुयोग शब्द पर विचार करते हुए वृत्तिकार ने अनुयोग का स्वरूप, अनुयोग की व्युत्पत्ति, अनुयोग के भेद, अनुयोग की निक्षेप पद्धति आदि दी है। इसी तरह प्रत्येक स्थल पर वृत्तिकार ने मूल सूत्रों एवं नियुक्ति युक्त पदों आदि के अर्थ गांभीर्य पर अधिक ध्यान दिया है। यही कारण है कि आचारांग वृत्ति पाठकों के समक्ष नय, निक्षेप आदि को सरल रूप में प्रस्तुत करता है। वृत्ति में गद्य और पद्य का मिश्रण सम्पूर्ण वृत्ति में गद्य प्रधान है। गद्य की सुकुमारता के लिए वृत्तिकार ने आकर्षक शब्दावलियों, मधुर पदों, विषयगत विवेचन एवं विविध संदर्भो को स्थान दिया। इससे गद्य अधिक प्रभावशाली तथा भावों को जागृत करने वाले बन गए। विषय एवं शब्द अर्थ की प्रस्तुति के लिए जो विविध दृष्टान्त दिये हैं, वे अधिक रोचक एवं अर्थ के सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं। अर्थ की अधिकता एवं सौन्दर्यता को लिए हुए वृत्तिकार ने गद्य के अतिरिक्त जो पद्य प्रस्तुत किये हैं वे ज्ञेय तत्त्व से परिपूर्ण हैं। प्राकृत में जितनी भी गाथाएँ दी हैं वे सुबोध एवं सहज रूप में कंठस्थ की जा सकती हैं। इस तरह वृत्तिकार का यह प्रयास गद्य एवं पद्य के मिश्रण से युक्त निश्चित ही सराहनीय है। वृत्ति की शैली आचारांग वृत्ति की शैली नय और निक्षेप पर आधारित है। वृत्तिकार ने जो कुछ भी विवेचन किया है उसमें नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप, द्रव्य निक्षेप और भाव निक्षेप-इन चार निक्षेपों के अतिरिक्त निक्षेप के सात प्रकार भी दिये हैं, जैसे-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, ताप, प्रज्ञापक और भाव रूप। इस निक्षेप पद्धति पर आधारित सम्पूर्ण सूत्र का विषय नाना प्रकार के विवेचन को प्रस्तुत करता है। जैसे-एक जीव तत्त्व को ही लें-वृत्तिकार ने इस जीव तत्त्व पर कथन किया है कि जीव है। जीव क्या जानता है? जीव नहीं जाता है? जीव असत् है? जीव अवतव्य है? जीव नित्य है? इत्यादि / इसी तरह वृत्तिकार ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि के विषय में प्राकृत में ही कहा है, विनय से ज्ञान, ज्ञान से दर्शन, दर्शन से चारित्र, चारित्र से मोक्ष और मोक्ष से अव्यावाध सुख प्राप्त होता है। आचारांग वृत्ति की शैली में जो भी विवेचन प्रस्तुत किया गया है, वह अर्थ के रहस्य को खोलता हुआ सूत्र की वास्तविकता को अङ्कित कर देता है / वृनिकार ने विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए संक्षिप्त कथाओं का भी सहारा लिया है। जैसे-सहसम्मति पद को समझाने के लिए वृत्तिकार ने दृष्टान्त दिया है२१० आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org