________________ परम्परा थी। आगमों की सुरक्षा के लिए समय-समय पर विविध वाचनाएँ की गईं। उन वाचनाओं में भी बहुत अन्तर रहा। इससे भी आगमों की अर्धमागधी भाषा में अन्तर होता गया। मूल भाषा जो भी थी, उसमें आगमों के विशेषज्ञ आचार्यों द्वारा जो विविध सम्मेलन आयोजित किये गये उनसे भी भाषा परिवर्तन हुआ होगा; क्योंकि वे अलग-अलग प्रान्तों के रहने वाले थे। इसलिए उनसे भी उन प्रदेशों की भाषाओं का प्रभाव पड़ा होगा। मूल भाषा में कई मिश्रण हुए होंगे। भाषा और शैली में भी कई परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। शैली की अपेक्षा गद्य और पद्य दो रूपों में आगमों की सूत्र पद्धति है। सूत्रकारों की अपेक्षा वृत्तिकारों ने जो व्याख्यात्मक पद्धति का प्रयोग किया, उसमें विविध भाषाओं का समावेश हो गया। नियुक्तिकारों ने सूत्रात्मक शैली पर जो विश्लेषण प्रस्तुत किया वह प्राकृत भाषा में छन्दोबद्ध है भाष्यकारों ने इनमें जो विवेचन प्रस्तुत किया उसमें प्राकृत और संस्कृत दोनों ही भाषाओं का समावेश हो गया, चूर्णिकारों ने भी आचारांग चूर्णि में प्राकृत और संस्कृत को अधिक महत्त्व दिया। आचार्य शीलांक ने जो वृत्ति लिखी उसमें आचारांग के मूल सूत्र, नियुक्तिकारों की नियुक्तियाँ और चूर्णिकारों की चूर्णियों का प्रभाव ही स्पष्ट झलकता है। शीलांक आचार्य ने आचारांग की वृत्ति लिखते हुए प्रत्येक विषय को विस्तार से विवेचन किया है। इसकी शैली और भाषा सुबोध एवं सरल है। वृत्तिकार ने यह वृत्ति मूल सूत्र पर केन्द्रित करके लिखी है। इसमें नियुक्ति का भी सहारा लिया है। वृत्तिकार ने यत्र-तत्र विषय की गंभीरता को स्पष्ट करने के लिए प्राकृत गाथाओं और संस्कृत के श्लोकों का भी उपयोग किया है। . शब्द और अर्थ की विशेषता... शब्द और अर्थ दोनों ही भाषा के महत्त्वपूर्ण अङ्ग हैं। परन्तु शब्द की अपेक्षा अर्थ के सौन्दर्य पर वृत्तिकार ने विशेष महत्त्व दिया है। उन्होंने वृत्ति के प्रारम्भ में ही जो मंगलाचरण प्रस्तुत किया है, उसमें चारों अनुयोगों के विषय को प्रतिपादित करने की प्रतिज्ञा की है। इसी प्रतिपादन में प्राकृत की गाथाओं को और संस्कृत के श्लोकों को प्रस्तुत करते हुए विविध प्रकार की व्युत्पत्तियाँ भी दी हैं। जैसे“श्रुतमितिश्रुतज्ञानम्” या “मां मालयत्यपनयति भवादिति मङ्गलं"। . आचारांग वृत्ति में वृत्तिकार ने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विषय को प्रतिपादन करने में लिए तीन प्रकार के कारणों को ध्यान में रखा है। जैसे-(१) अर्थ की सरलता. (2) शब्द की मधुरता और (3) परिभाषा की प्रमुखता। आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन 209 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org